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________________ (82) (83) नहार अंग देखिकै ग्रंथ पेखिकै, जानौ सकल गृही-व्योहार। संजम नीव मनुष-भौ-सोभा, विसन त्याग-विधिकहूँ कि सप्तव्यसनोंके नाम / अडिल्ल छन्द। जूवा आमिष, मदिरा दारी छोरिए। आखेटेक चोरी, पर-तियहित तोरिए // महा-सूर ए सात, विषम-दुख दैनकौं। सात नरकने भेजे, जग-जिय लैनकों // 4 // ज्ञा व्यसन / कवित्त (31 मात्रा)। अजस-धाम सबविसनस्वाम, इक नरक गौनकौं सौन किन सकल-आपदा-नदी-सैले यह, पाप विरछको वीज विच धन सुभ धर्म सर्म सब खंडे, मंडै झूठ वचन-व्योहार। द्यूत भूत वस ऊत परै मति, परगट देख देख संसार | सवैया इकतीसा। आरति अपार करै, मार सांचसौं विगार, जस सुख दर्व पुन्य प्रभुता विनास है। जीतेकों त्रिपति नाहिं हारे पै न गांठिमाहि, लेत है उधार देत महा दुःखरास है // आमिष-व्यसन / पानी पाक गंदी देह लोकमाहिं कहैं ऐह, पाकसेती पाक गंधसेती गंध होत है। जलसेती मेवा नाज उत्तम सरव साज, __ भूत-भयौ मांस कैसे उत्तम उदोत है // हिंसा बिना बनै नाहिं करकै नरक जाहिं, सहज भयौ अनंत जीवको निगोत है। नाम लैनौ छ्वनौ देखनौ नाहिं संतनिकों, ___ अंगीकार कौन वात बँधै नीच गोत है // 7 // फिरत अनादि-काल एक एक जीवनिसौं, ___तात मात सुत नारि नाते बहु भए हैं। एक जीव घात कियें सब ही कुटुंब हत्यौ, हिंसाके भावनिसौं निज हू मर गए हैं। जोई जीव मरै सोई क्रोधकी लगनसेती, __ मारै भव भव ताहि वैर-भाव छए हैं। जीतवता चाही जिनौं जीवौंकों विराधे नाहिं, भांति भांति पोष सुख आपनिकौं लए हैं // 8 - मदिरा-व्यसन। ___ कवित्त (31 मात्रा) मदिरा पीय मातसौं कु-नजर, महानिलज ताकौं कहि कोय। देखौ और राहमैं चाटें, स्वान पूतमुख मीठा होय // 1 पवित्र / 2 अपवित्र / 3 प्राणीसे पैदा हुआ। 4 आप ही आप हुआ भर्थातू खयं मरे हुए प्राणीका मांस / 5 बुरी नजर-कामवासना। / और कौन वात तातको न इतवार जात, नारिकों नहीं सुहात मात हुन पास है। चौपड़ हू त्याग धर्मध्यान लाग वड़भाग, आयु तौ तनक सोऊ होत सदा नास है // 6 // 1 वेश्यागमन। 2 शिकार / 3 अकीर्तिका घर / 4 जानेके लिये / 5 जीना, सौदियां / 6 पर्वत / 7 विश्वास / Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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