________________ ज्ञानदशक। कुंडलिया। देत मरत स्वामिकी, वीतराग ए आप / रागभाव इनकी गयो, रही चेतना व्याप // रही चेतना व्याप, आपकी सोई जाने। गयौ भाव पर जान, ग्यान निहवे उर आने / ते सोई निजल्प, भूप सिवसुंदर पेखें। ग्याता आठौं बाम, स्वामिकी मूरति देखें // 1 // जिन जिन नैनौं , देखौ दर्वविलास / / दरवित अविनासी सदा, उपजे उतपति नास // उपनै उतपति नान, तासतें सत्ता साधी / निजगुन गुनी अभेद, वेद सुखरीत अराधी // साधक साध उपाध, व्याध तजि दीनी तिननें। आप आपरसमगन, लगन लौ कीनी जिननें // 2 // मानी क्रोधी कौन है, विनै छिमाधर कोय। मान विनै चितधारतें, जीवभाव नहिं होय / / जीवभाव नहिं होय, जोय विकलप उपजाये। नामकथन भ्रमंछाप, आप निरनाम कहावै // नय परमान निछेप, टेपकी कौन कहानी / आप आप निर्रवाच, राच हमने यह मानी // 3 // मैं मैं काहे करत है. तन धन भवन निहार / तू अविनासी आतमा, विनासीक संसार / / प्रहर। 2 उत्पादन्य व्यसे / 3 मयुरू है, निभ्या है / 4 निवाच्य (65) विनासीक संसार, सार तेरो तोमाहीं। आप आप सिरमौर, और उपमा जग नाहीं // विन जानं चिरकाल, बाल जग फिरो बहुत तें। मुद्ध वुद्ध अविरुद्ध, आतमा सो में सो में // 4 // करता किरिया कमकी, कर जीव व्योहार / निहर्च रतनत्रयमई, है अभेद निरधार // है अभेद निरधार. धारना ध्यान न जाक। साहब सेवक एक, टेक यह वरतै ताकें / आप आपमैं आप, आपको पूरन धरता / मुसंवेद निजधरम, करम किरियाको करता // 5 // ग्यानी जाने ग्यानमें, नमैं वचन मन काय / कायम परमारथविष, विषै-रीति विसराय // विष रीति विसराय, राय चेतना विचारै / चारे क्रोध विसार, सार समता विसतारे / तारे औरनि आप, आपकी कोन कहानी। हानी ममता-बुद्धि, वुद्धिअनुभौते ग्यानी // 6 // सोहं सोहं होत नित, साँस उसासमझार / ताको अरथ विचारियै, तीन लोकमैं सार / / तीन लोकमैं सार, धार सिवखेतनिवासी / अष्टकर्मसों रहित, सहित गुण अष्टविलासी // जैसी तैसी आप, याप निहचै तजि सोहं / अजपा-जाप सँभार, सार सुख सोहं सोहं // 7 // आत्मानुभव। Scanned with CamScanner