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________________ ( 12) - बोल्यौ नाहिं भगवान करतें न दयौ दान, उरमैं न दया आन यों ही परवान रे // .....पाप करि पेट भरि पीठि दीन तीय पर, मा .... पाँव नाहिं तीर्थ कर सही सेती(2) जान रे। स्याल कहै बार बार अरे सुनि श्वान यार,. इसकौं तू डारि डारि देह निंद्यखान रे // 33 // देखो चिदानंद राम ज्ञान दिष्टि खोल करि, तात मात भ्रात सुत स्वारथ पसारा है।। तू तो इन्हें आपा मानि ममता मगन भयौ, वह्यौ भ्रममाहिं जिनधरम बिसारा है // PIS यह तौ कुटुंब सब दुःखहीको कारन है, तजि मुनिराज निजकारज विचारा है। तातें गहौ धर्म सार स्वर्गमोक्षसुखकार, छ ॐ सोई लहै भवपार जिन धर्म धारा है // 34 // " सोचत हौ रैनि दिन किहिं विधि आवै धन, सो तौ धन धर्म विना किनहू न पायौ है। यह तौ प्रसिद्ध वात जानत जिहान सब, धर्मसेती धन होय पापसौं विलायौ है // धर्मके कियेते सब दुःखको विनास होत, सुखको निवास परंपरा मोख गायौ है। * ताते मन वच काय धर्मसौं लगन लाय, - यह तौ उपाय वीतरागजी बतायौ है // 35 // (13) व्यबसायचतुष्क / केई सुर गावत हैं केई तौ वजावत हैं, केई तौ बनावत हैं भांडे मृत्ति सानिके। केई खाक फटकै हैं केई खाक गटकै हैं, : केई खाक लपटै हैं केई स्वांग आनिके // : केई हाट बैठत हैं अंबुधिमैं पैठत हैं, केई कान ऐंठत हैं, आप चूक जानिके। एक सेर नाज काज अपनो सरूप त्याज, डोलत हैं लाज काज धर्म काज हानिके // 36 // शिष्यकौं पढ़ावत हैं देहकौं बढ़ावत हैं, हेमकौं गढ़ावत हैं. नाना छल ठानिके। कौड़ी कौड़ी मांगत हैं कायर है भागत हैं। प्रात उठि जागत हैं स्वारथ पिछानिके // कागदको लेखत हैं केई नख पेखत हैं,... केई कृषि देखत हैं अपनी प्रवानिके। एक सेर नाज काज़ अपनो सरूप त्याज, डोलत हैं लाज काज धर्म काज हानिके // 37 // केई नटकला खेलें केई पटकला वेलें, / केई घटकला झेलें आप वैद मानिके। केई नाच नाचि आवै केई चित्रकौं बनावें, केई देश देश धावै दीनता वखानिके // की मूरखको पास चहैं नीचनकी सेवा बहैं, .. चोर के संग रहैं लोक लाज मानिके / 1 राग / 2 वर्तन, मिट्टीके / 3 समुद्रमेंद्र। 4 सोनेको / 5 खेती। .. Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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