________________ (10) देह उपदेश अब रहै जु सुहागमुझ, छांडि जग चलै शिव ओर त्यौं ही.॥२४॥ कहौं इस भाँति सुनि चिदानंद वावरे, कौन विधि नारि पर हियें पैठी। कुजसकी खानि दुख दोषकी बहिनि है, तुमैं दुख देति जो महाहेठी // छोड़ि वह संग तुम परम सुख भोगवो, सुमतिके संग निज हिये वैठी। छांडि जगवास शिववास पलमैं लहौ, परत हौं पाय कहुं जीव ऐठी // 25 // व्यवहार हितोपदेश वर्णन, सवैया तेईसा (मत्तगयन्द)। चेतनजी तुम चेततक्यौं नहिं, आव घटैजिम अंजलिपानी। सोचत सोचत जात सबै दिन, सोवत सोवतरैनि बिहानी॥ "हारि जुवारि चले कर झारि," यहै कहनावत होत अज्ञानी। छांडि सबै विषयासुखस्वाद, गहौ जिनधर्म सदासुखदानी२६ पुन्य उदै गज वाजि महारथ, पाइक दौरत हैं अगवानी। कोमल अंग सरूप मनोहर, सुंदर नारि तहां रति मानी // दुर्गति जात चलै नहिं संग, चलै पुनि संग जु पाप निदानी। यौं मनमाहिं विचारि सुजान, गहौ जिनधर्म सदा सुखदानी // मानुष भौ लहिकै तुम जो न, कस्यौ कछु तौ परलोक करोगे। जो करनी भवकी हरनी,सुखकीधरनी इस माहिं वरेंगे। सोचत हौ अब वृद्धि लहैं, तब सोचत सोचत काठ जरौगे। फेरि न दाव चली यह आव,गहौनिज भाव सुआपतरौगे२८ १नीच खभाववाली / 2 आयु / 3. पयादे सेवक। यर (11) आव घटै छिन ही छिन चेतन, लागिरह्यौ विपयारसहीको / फेरि नहीं नर आव तुमैं, जिम छांडत अंध बटेर गहीको॥ आगि लगें निकसै सोई लाभ, यही लखिकैगह धर्म सहीको। आव चली यह जात सुजान, "गई सुगई अबराखिरहीको" कुंडलिया। यह संसार असार है, कदली वृक्ष समान। "यामैं सारपनो लखै, सो मूरख परधान // . सो मूरख परधान, मानि कुसुमनि नेभ देखै / सलिल मथै घृत चहै, शृंग सुंदर खर पेखे // अगनिमाहिं हिम लखै, सर्पमुखमाहिं सुधा चह।... जान जान मनमाहि, नाहिं संसार सार यह // 30 // 'कवित्त (31 मात्रा) तात मात सुत नारि सहोदर, इन्हें आदि सब ही परिवार। इनमें वास सराय सरीखो, 'नदी नाव संजोग' विचार // यह कुटुंब स्वारथको साथी, स्वारथ विना करत है ख्वार। तातें ममता छांडिसुजान, गहौ जिनधर्म सदा सुखकार 31 चेतनजी तुम जोरत हो धन, सो धन चलै नहीं तुम लार। जाकों आप जानि पोषत-हौ, सो तन जरिकै है है छार // विषै भोगिकै सुख मानत हौ, ताको फल है दुःख अपार। यह संसार वृक्ष सेमरको, मानि कह्यौ मैं कहूं पुकार // 32 // .:. सर्वया इकतीसा। 7 सीस नाहिं नम्यौ जैन कान न सुन्यौ सुवैन, देखे नाहिं साधु नैन ताको नेह भान रे। 1 पकड़ी हुई बटेरको। 2 आकाशके कुमुम, अर्थात् फूलोंको। 3 गधेके सींग। 4 ठंडापन / 5 सेमरका वृक्ष जिसका फूल तो सुहावना होता है, पर फलमें निस्सार घुआ निकलता है। 6 त्याग दे। ........ 413 Scanned with CamScanner