________________ (242) दोहा। अस्ति अमूरत अगुरुलघु, दर्व प्रदेस प्रमेय / वस्त अचेतन मूरती, चेतन दस गुन गेय // 5 // सवैया इकतीसा / दर्व खेत काल भाव चारौं गुन लिये अस्त, परसंग बात सान(2) सदा गुन वस्त है। उतपात वै धुव परनतसों दवे तत, गट्टै उडै नाहिं सो अगुरुलघु समस्त है / दर्व गुन परजायको अधार परदेस, आपकौं जनावै गुन परमेय लस्त है। मूरत अमूरत अचेतन चेतन दसौं, गुन छहौं दर्वमाहिं जाने भ्रम नस्त है॥६॥ जीव माहिं चेतन अमूरत ए दोन्यौं गुन, पुग्गलमैं मूरत अचेतन दो पाइए। अमूरत अचेतन ए दोऊ हैं तिहूं काल, धर्माधर्म नभ काल चारोंमें बताइए। अस्त वस्त दरवते परमेय परदेस, अगुरु लघु ए छहाँ सवहीमें गाइए। ताते एक एक दर्व माहिं आठ आठ सधैं, मुख्य गुन चेतनको ध्यान माहिं ध्याइए // 7 // जो तौ दर्व गुरु होय भूमैं वसि जाय सोय, जो तौ दर्व लघु होय उड़ जाय तूल ज्यौं / ताही” अगुरु लघु वड़ा गुन दर्व माहिं, जातें दर्व अविनासी सदा मेरमूल ज्यौं // (213) ताही गुनका विकार ताके वार भेद धार, केवलीके ग्यानमै विराज रहे थूल ज्या / तिन्हें कहि सके कोय ममझ मो बुध होय, किंचितसे भाखत ही मिट धर्म भूल ज्यों // 8 // जीवमै अनंत गुन तामै एक ग्यान नाम, मूल पंच भेद भेद उत्तर अनंत हैं। दूजे गुन दर्सनके चार भेद मूल कहे, उत्तर अनेक भेद लोकमैं भनंत हैं / तीजा गुन सुख सुखी चक्री जुगलिये जीव, फनी इंद अहमिंद सिद्धजी महंत हैं। चौथा वल गज सिंघ चक्री देव जिनराज, ऐसे ही अनंतकौं जे ध्यावें तेई संत हैं // 9 // पुग्गल दरवमैं अनंत गुन रूखा एक, ताके बहु भेद धूल राख रेत मान है। दूजे चिकनेके भेद हैं अनेक रूप पानी, छेरी गाय भैसि ऊंटनीको दूध जान है // तीजा गुन कड़वा है भेद निंव इंद्रायन, विष और महाविष लोकमैं निदान है। चौथा गुन मीठा गुड़ खांड सर्करा पीयूप, ऐसे ही अनंतनिसौं मेरौ ग्यान आन है // 10 // दर्वमें अनंत गुन एक जीवमें अनंत, एक अस्त भाव ताके चौदै गुनथान हैं। एक पुदगलमें अनंत वीस नाम कहे, एक फास वेल काठ हाड औ पखान है। Scanned with CamScanner