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________________ तबदामी बहु प्राया, (212) नौ भीको नेह जानौ, दाता श्रेयंस ठानी। लिया ईखरस नवीना, सुर पंचचरज कीना॥२॥ तब भरत भूप धाया, श्रेयांस भुवन आया। मौनीकी बात जानी, क्योंकर तुमें पिछानी॥ कही भरतसौं विख्यातं, भव आठकेरी वातं / / वनजंघ श्रीमतीका, सब कहा भेद नीका // 26 तब दान विधि बताई, सवहीके मन सुहाई। तप कियौ वह प्रकार, भए बरस इक हजार // 27 // चह करम तव भगाया, तब ग्यान भान पाया। सर कियौ समोसरना, सो काप जाय वरना // सुर नर असुरने पूजा, तुही देव नाहिं दूजा। बानी सु मेघ वरसे, सुनि सरव जीव हरसै // 20 गनधर भए चौरासी, वहु मुनि भए निरासी। स्रावक अनेक कीन, सवहीको वरत दीनें // 30 // पस नरकतें निकारे, सुर मुकति सुख विधारे / सब देस करि विहार, इक लाख पुव्व सारं // 31 // मुनि एक सहस संग, भए अमर सुख अभंगं। तन खिरा ज्यों कपूर, इंद्र भए सव हजूरं // 32 // करि बंद बार वारं, नख केश संसकारं / रज सीस लै लगाई, भावना चित्त भाई // 33 // जे गुन तिहारे ध्यावें, पूजा करें करावें / जे नामकौं भजै हैं, सब पापकों तजै हैं // 34 // जे कथा तेरी गावे, जे सुनै प्रीति लावें। जे चित्तमै धरै हैं, सव दुःखकों हरै हैं // 35 // तुम कथा है वहुतसी, मैं कही है तनकसी।।' यह चूक वकस दीजी, द्यानतको याद कीजो // 36 // . इति आदिनाथस्तुति। ... ( 213) शिक्षापंचासिका। दोहा। राग विरोध विमोह वस, भ्रमै जीव संसार / तीनों जीत देव सो, हमें उतारी पार // 1 // ... धंधेमै दिन जात है, सोबत रात विलात / कौन बेर है धरमकी, जब ममता मरि जात // 2 // नरकी सोभा रूप है, रूप सोभ गुनयान / गुनकी सोभा ग्यानतें, ग्यान छिमातें जान // 3 // आव गलै अघ नहि गलै, मोह फुरै नहिं ग्यान / देह घटै आसा बढ़े, देखौ नरकी वान // 4 // चेतन तुम तौ चतुर हौ, कहा भए मतिहीन / ऐसौ नर भव पायकैं, विपयनमै चित दीन // 5 // ग्याता जो कुकथा करे, पीछे, निंदै सोय / मूरख ग्यान वखानिक, आदर करै न लोय // 6 // त्याग करै त्यागी पुरुष, जान आगम भेद। सहज हरप मनमें धरै, करै करमको छेद // 7 // वालपने अग्यान मति, जोवन मदकर लीन / ' वृद्धपने है सिथिलता, कहौ धरम कब कीन // 8 // बालपने विद्या परै, जोवन संजमलीन / वृद्धपने संन्यास ग्रहि, करै करमकों छीन // 9 // जाहर जगत विलात है, नाहर जममुख माहिं / ता हरकै हूजै सुखी, चाह रहै कछु नाहिं // 10 // भमता जीव सदा रहै, ममता रत परजाय। समता जब मनमैं धरै, जम तासौं डर जाय // 11 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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