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________________ (210) आदिनाथस्तुति। रेखता। कीनों, नाम प्रजापति कीन / / 13 / / तुम आदिनाथ स्वामी, वंदों त्रिकाल नामी। तुम गुन अनंत भारी, हम तनक बुद्धिधारी // 1 // थुति कौन भांति गावे, यह वुद्धि कहां पावें। तुम ही सहाय हूजो, प्रभु सम न देव जी // 2 // सर्वार्थसिद्धिवासी, तिहुं ग्यान सुखविलासी। गर्भ मास पट अगाऊ, सुर कियौ नगर चाऊ // 3 // भवि भाग जोग आए, सुर मेरपै न्हुलाए। नाभिरायके दुलारे, मरुदेविके पियारे // 4 // जव आठ वरस धारे, अनुविरत सव संभारे / पट लाख पुव्व आए, लखि सबनि सुक्ख पाए॥५॥ नाभिराय चित विचारी, संतानवृद्धिकारी। तुम परम गुरु सबनके, हम नाम गुरु भवनके (211) कलसाभिषेक कीनों, नाभिने स्वराज दीनौं / वीस लाख पुत्र आए, तब प्रजापति कहाए // 12 // सव दान सवौं दीनं, सब लोग सुखी कीनं / कियौ राज सुख उदारं, सब भोग बह प्रकारं // 13 // प्रभु भोग तजत नाहीं, इंद्र फिकर चित्त माहीं। तब अपछरा पठाई, सो नाचिकै विलाई // 14 // लखि जगत-थिति विनासी, भए पुब लख तिरासी / वैराग भाव भाए, लौकांत इंद्र आए // 15 // दियौ भरत राजभारं, किय भूप सव कुमारं। लग भाव भावभारं, किय जगतनाथ कहना हमारा कीजै, पानिग्रहन करीजै / प्रभु मोह उदै बूझा, चुप रहे भाव सूझा // 7 // तब इंद्र भी आया ही, दो भूप सुता व्याही। भए एक सौ कुमारं, दो सुता गुन अपारं // 8 // सब आप ही पढ़ाए, हुन्नर सबै सिखाए। जव कलपवृच्छ भागे, सब नाभि चरन लागे // 9 // नृप ले सबनिकों आए, प्रभुकों वचन सुनाए। यह प्रजा राखि लीजै, सबहीकों सुखी कीजै // 1 // प्रभु कालथिति विचारी, गई भोगभूमि सारी। तब ही सुधर्म आए, पट कमे सब लगाए // 11 // षट मास जोग दीनौं, तन अचल मेर कीनौं / सब साथतें सु भागे, छुध तृपा काज लागे // 17 // प्रभु पाय जग परे हैं, फल फूल लै धरे हैं। नमि विनमि तहां आए, प्रभुकों वचन सुनाए // 18 // सुत सरव भूप कीनें, हम क्यौं विसारि दीनें / धरनेंद्र तहां आया, वामनका भेष लाया // 19 // तुम जाहु भरत पासे, अव राज लेहु वासें। तुझकों कवन बुलावै, को भरत कौन जावै // 20 // इनका कहा करेंगै, इनहीकै हो रहेंगे। तब इंद्र भगति भीने, खगपती भूप कीने // 21 // प्रभु जोग पूरा कीना, आहार चित्त दीना। आए नगरके माहीं, विधि जानें कोई नाहीं // 22 // वन माहिं फिर सिधारे, समताके भाव धारे। दिन चार सै भए हैं, गजपुरमैं तब गए हैं // 23 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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