________________ (205) वज्रदंत कथा ' डार हो / / 66 // सभास। स हो // 67 // चौपई। क) पकी मन (204) नाम कहा लौं मैं कहूं जी, धनि धनि नेमिकुमार बंदी छोरे परमजती जी, सब जग तारनहार हो। सगुन अनंत महंत हो जी, प्रगट छियालिस भास। दोष अठारै छय गये जी, लोकालोक प्रकास हो बह नारी प्रतिवोधिके जी, भेजी सुरगति सार। रजमति तिय लिंग छेदिक जी, सोलै सुरग मझार होकर बहुतनकौं सुरपद दियौ जी, बहुतनकौं सिवठाम / तीन सतक तेतीस संग जी, भये अमर सुखधाम हो। तन कपूर ज्यों खिर गया जी, रहे केस नख धार। सुगंध दरव धरि अगन सुर जी, मुकट नम्यौ तिह वार हो कथा तिहारी मुनि कहें, हमनें लीनौ नाम। दो अच्छर नर जे जपें जी, सीझें वंछित काम हो॥७२॥ सांचे दीन दयाल हौ जी, द्यानत लौ तुम माहिं। अपनी पन प्रतिपाल हौ जी, चिंता व्यापै नाहिं हो॥७२॥ इति नेमिनाथबहत्तरी। मातसुत अवर खोई बैठौ वन्नदंत भूपाल, माली लायौ फूल रसाल // (टक)। कमल माहिं मृत भ्रमर निहार, चक्री मन कंप्यौ तिह वार१॥ नासा वसि इन खोई देह, मैं सठ कियौ पंचसौं नेह // 2 // मति सुत अवधि ग्यानकौं पाय,मैं न कियौ तप मोख उपाय भव तन भोगनिकौं धिक्कार, दिच्छा धरौं वरौं सिव नार॥४॥ सुतकौं सर्व संपदा देय, सो वैरागी राज न लेय // 5 // पुत्र हजार सबनसौं कहा, वौन जेम किनहू नहिं गहा // 6 // आपनि मुकत होत हौ भूप, हमकौं क्यौं डोवौ जगकूप // 7 // पोतेकौं दे राज समाज, आपन चले मुकतिके काज // 8 // पितातीर्थकरके ढिग जाय, नव निधि रत्त तजे दुखदाय॥९॥ तीस सहस नृप पुत्र हजार, साठि सहस रानी संग धार // 10 // आप मुकति सब सुगतिमझार, द्यानत नौ सुपद दातार११ इति वज्रदंतकथा। 1 वमन-कैके समान किसीने राज्य नहीं लिया। Scanned with CamScanner