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________________ (190) रागदोपतें आप ही, परै जगतके माहिं। ग्यान भावतें सिव लहै, दूजा संगी नाहिं // 12 // जैसे काहू पुरुषको, दरव गढ़ा घर माहिं / उदर भरै कर भीखसौं, व्यौरा जानें नाहिं // 13 // ता दिनसौं किनही कहा, तू क्यों मागै भीख / तेरे घरमैं निधि गढी, दीनी उत्तम सीख // 14 // ताके वचन प्रतीतिसौं, हरख भयौ मन माहिं। खोदि निकाले धन विना, हाथ परै कछु नाहिं॥२५ त्यौं अनादिकी जीवकैं, परजै-बुद्धि वखान / मैं सुर नर पसु नारकी, मैं मूरख मतिमान // 16 // तासौं सदगुरु कहत हैं, तुम चेतन अभिराम। निहचै मुकति-सरूप हौ, ए तेरे नहिं काम // 17 // काल लब्धि परतीतिसौं, लखौ आपमैं आप। पूरन ग्यान भये विना, मिटै न पुन्य न पाप // 18 // पाप कहत हैं पापकौं, जीव सकल संसार / पाप कहें हैं पुन्यकौं, ते विरले मति-धार // 19 // बंदीखानामें पस्यौ, जाते छूटै नाहिं / विन उपाय उद्यम किये, त्यौं ग्यानी जग माहिं // 20 // सावुन ग्यान विराग जल, कोरा कपड़ा जीव / रजक दच्छ धोवै नहीं, विमल न लहै सदीव // 21 // ग्यान पवन तप अगनि बिन, देह मूस जिय हेम / कोटि वरपलौं राखियै, सुद्ध होय मन केम // 22 // दरव-करम नोकरमतें, भाव करमतें भिन्न / विकलप नहीं सुबुद्धिकैं, सुद्ध चेतनाचिन्न // 23 // (191) च्या नाहीं सिद्धकै, तू च्या के माहिं / च्यारि विनासैं मोख है, और वात कछु नाहि // 24 // ग्याता जीवन-मुकत है, एकदेस यह वात / ध्यान अगनि करि करम वन, जलै न सिव किम जात॥ दरपन काई अथिर जल, मुख दीसै नहिं कोय / मन निरमल थिर विन भयें, आप दरस क्यों होय२६ आदिनाथ केवल लह्यौ, सहस वरस तप ठान / . सोई पायौ भरतजी, एक महूरति ग्यान // 27 // राग दोष संकल्प हैं, नयके भेदविकल्प / दोय भाव मिटि जायं जव, तव सुख होय अनल्प 28 राग विराग दुभेदसौं, दोय रूप परनाम / रागी भ्रमिया जगतके, वैरागी सिवधाम // 29 // एक भाव है हिरनकैं, भूख लगँ तिन खाय / एक भाव मंजारक, जीव खाय न अघाय // 30 // विविध भावके जीव वहु, दीसत हैं जग माहिं। एक कछू चाहें नहीं, एक तर्जे कछु नाहिं // 31 // जगत अनादि अनंत है, मुकति अनादि अनंत / जाव अनादि अनंत हैं, करम दुविध सुनि संत // 32 // सवकै करम अनादिके, कर्म भव्यकै अंत / करम अनंत अभव्यकैं, तीन काल भटकंत // 33 // फरस वरन रस गंध सुर, पाचौं जान कोय / वोले डोले कौन है, जो पूछ है सोय // 34 // जो जानै सो जीव है, जो मानै सो जीव / जो देखै सो जीव है, जीवै जीव सदीव // 35 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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