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________________ (184) पर उपगारी गुन भारी सो सराहनीक, और सब जीव भव भाँवर भरत हैं // 3 // एकनिकैं पुन्य उदै पुन्यकर्मबंध होय, एकनिक पुन्य उदै पापबंध होत है / एकनिक पाप उदै पापकर्मबंध होय, एकनिकै पाप उदै बंधै पुन्य गोत है // उदै सारू कौन बात उदै कहैं मूढ़ भ्रात, आलस सुभावी जिनके हियें न जोत है। उद्यमकी रीत लई पर्मारथ प्रीत भई, स्वारथ विसारै निज स्वारथ उदोत है // 4 // . विद्यासौं विवाद करें धनसौं गुमान धरै, वलसौं लराई लरै मूढ आधव्याधमैं / ग्यान उर धारत हैं दानकौं संभारत हैं, परभै निवारत हैं तीनौं गुन साधमैं // . पर दुख दुखी सुखी होत हैं भजनमाहिं, भवरुचि नाहीं दिन जात हैं अराधमैं / देहसेती दुवले हैं मनसेती उजले हैं, सांति भाव भरै घट परै ना उपाधमैं // 5 // पोषत है देह सो तौ खेहको सरूप वन्यौ, नारि संग प्यार सदा जार-रंग राती है। सुतसौं सनेह नित 'देह देह' किया करै, पावै ना कदाचि तौ जलावै आन छाती है / दामसौं वनावै धाम हिंसा रहै आठौं जाम, लछमी अनेक जोरै संग नाहिं जाती है। . नामकी विटंबनासौं खाम काम लागि रया, पाहयकी जान बिन होत ब्रह्मवाती है // 6 // काह न सताये छर छिद्र न बनाय सबडीके मन भाव परमारथ सुनावना। नोभकी न वाव होय क्रोधको न भाव जोय, पांचौं इंद्री संवर दिगंवरकी भावना // अरचाकी चाल लिये चरचाको ख्याल हियं, साधनिकी संगतिमै निहसौं आवना / मौन धर रहै कहै सुखदाई मीठे वैन, प्रभुसेती लव लाय आपको रिझावना // 7 // वच्छ फलैं पर-काज नदी औरके इलाज, गाय-दूध संत-धन लोक-सुखकार है। चंदन घसाइ देखौ कंचन तपाइ देखौ, अगर जलाइ देखौ सोभा विसतार है। सुधा होत चंदमाहिं जैसे छांह तरु माहिं, पालेमैं सहज सीत आतप निवार है। तैसैं साधलोग सब लोगनिकौं सुखकारी, तिनहीको जीवन जगत माहिं सार है // 8 // पूजा ऐसी करें हमें सब संत भला कहैं, दान इह विध दैहिं लैंहिं मुझ नामों। सास्त्रके संजोग कर लोग आ3 मेरे घर, बात अच्छी कहूं मोहि पूछ सव कामकों // प्रभुताकी फांसमैं फस्यौ है जगवासी जीव, अविनासी वूझ नाहिं लाग्यौ धन धामकौं / Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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