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________________ 13/17 5/24 4/44 17/29 12/42 19/10 19/8 19/14 11/41 16/18 14/18 14/24 268 12/24 14/30 4/30 7/35 5/20 10/46 11/30 19/21 5/14 1/33 परिशिष्टम्-२ उप्पायण संपायण उभयाभावेऽवि उवगाराभावम्मि वि उवठावणाएँ जेट्ठो उवसंपया य तिविहा उसभस्स उ इक्खुरसो उसभाइकमेणेसो उसभाइयाणमेत्थं उस्सग्गववायाण उस्सग्गेण विसुज्झति उस्सुत्ता पुण बाहति ऊणत्तं ण कयाइवि एईइ चेव सद्धा जायइ एईइ परमसिद्धी एते अवऊसणगा एए इत्थऽइयारा एएसिं सइ विरिए एएसु वट्टमाणो एएहितो अण्णे एकासणाइ णियमा एक्कंपि उदगबिंदू एक्को वाऽऽयपएसो एगागियस्स दोसा एतीऍ फलं णेयं एतीऍ सव्वसत्ता एते अहिगारिणो इह एतेण पगारेणं एत्तो अईव णेया 3/14 19/37 15/34 18/49 19/41 6/41 9/7 4/47 14/11 11/31 8/45 9/20 3/7 16/33 18/39 एत्तो ओसरणादिसु एत्तो चिय णिद्दिट्टो एत्तो च्चिय ण णियाणं एत्तो च्चिय णिद्दोसं एत्तो च्चिय पडिसेहो एत्तो च्चिय पुच्छादिसु एत्तो पडिसेहाओ एत्तो भिक्खामाणं एत्तो य अप्पमाओ एत्थं पुण अइयारा एत्थं पुण चउभंगो एत्थं पुन एस विही एत्थ इमं विण्णेयं एत्थ उ सावयधम्मे एत्थमणुसासणविही एमाइदेवयाओ एमेव अहोराई एमेव एगराई एयं च एत्थ एवं एयं च एत्थ जुत्तं एयं च एत्थ तत्तं एयं च कीरमाणं एयं च विसयसुद्धं एयं णाऊणं जो एयं मणेण एयं सामायारी एयपि जुज्जइ च्चिय एयद्दोसविसुद्धो 15/8 14/10 1/39 9/16 19/25 18/18 18/19 14/13 7/41 16/28 19/22 19/43 13/50 14/9 12/49 3/43 13/30
SR No.035335
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmratnavijay
PublisherManav Kalyan Sansthan
Publication Year2014
Total Pages355
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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