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________________ 282 श्री पञ्चाशक प्रकरण - 13 गुजराती भावानुवाद એષણાના દોષોનું જ વર્ણન કરે છે : कम्मादि संकति तयं, मक्खियमुदगादिणा उजं जुत्तं / णिक्खित्तं सजियादो, पिहियं तु फलादिणा ठइयं // 621 // 13/27 छाया :- कर्मादि शङ्कते तकत् प्रक्षितमुदकादिना तु यद् युक्तम् / निक्षिप्तं सजीवादौ पिहितं तु फलादिना स्थगितम् // 27 // मत्तगगयं अजोग्गं, पुढवादिसु छोढु देइ साहरियं / दायग बालादीया, अजोग्ग बीजादि उम्मीसं // 622 // 13/28 छाया :- मात्रकगतमयोग्यं पृथिव्यादिषु क्षिप्त्वा ददाति संहृतम् / दायकबालादिका अयोग्या बीजाधुन्मिश्रम् // 28 // अपरिणयं दव्वं चिय, भावो वा दोण्ह दाण एगस्स। लित्तं वसादिणा छड्डियं तु परिसाडणावंतं // 622 // 13/29 तिगं। अपरिणतं द्रव्यमेव भावो वा द्वयोः दान एकस्य / लिप्तं वसादिना छर्दितं तु परिशाटनावत् // 29 // त्रिकम् / ગાથાર્થ :- (1) જે આહારમાં આધાકર્મ આદિ કોઈ દોષની શંકા પડે તે શંકિત, (2) જે આહાર સચિત્ત पाए साहिथी युति होयते भ्रक्षित, (3) सथित साहिवस्तु 7524 भाडा२ भूतो होय ते निक्षित, (4) જે આહાર ફળ આદિથી ઢાંકેલો હોય તે પિહિત. (5) ભાજનમાં રહેલી વહોરાવવાને અયોગ્ય વસ્તુને પૃથ્વી આદિ ઉપર નાંખીને તે ખાલી થયેલા ભાજન વડે આપે તે સંદત, (6) બાળક વગેરે અયોગ્ય દાતા ભિક્ષા आपे तो हाय, (7) सथित्त जी४ वगेरेथी मिश्राडार मिश्र, (8) वडोसवानी वस्तु (आहार) અપરિણત એટલે અચિત્ત થયેલ ન હોય. અથવા બે માલિકમાંથી એકને વહોરાવવાની ભાવના ન હોય તે अपरित, (8) २२जी साहिथी ५२येली वस्तु सापे. लिस, (10) ढोगतो ढोगतो मापे ते छाईत. टीअर्थ :- 'कम्मादि'=४ माहार माघाभाहिलोषथी दूषित होवानी 'संकति'= शंड अरे अर्थात शं। पता होय ते माहार 'तयं = शंडित घोषवाणो छ. 'उदगादिणा'= सथित्त पाणी माहिथी 'जं'= 4 माहार 'जुत्तं'= युति होय ते 'मक्खियं' भ्रक्षित होष छे. 'सजियादो' सयित्त-मयित्त वस्तु 752 स्थापन माहार णिक्खित्तं'= निक्षित होषयुत छ. 'फलादिणा'=ण माहिथी 'ठइयं'= ढां होय ते 'पिहियं तु'= विलित होषयुत छ. // 621 / / 13/27 ___ 'मत्तगगयं'= भानमा २४सी 'अजोग्गं'= qडोराववाने अयोग्य शेत२। साहि वस्तुने 'पुढवादिसु'= पृथ्वी माह 52 'छोढु'= नजाने (पाली रीन.) 'देइ'= ते मानथी मापे ते 'साहरियं'= संहतोष छ 'दायग'= आय (हाता२) 'बालादीया'= माग, वृद्ध, रोगी, अनधिहरी वगेरे 'अजोग्ग'=४ हान मावा भाटे अयोग्य ते वहोरावे तो हाय घोष छ. 'बीयादिउम्मीसं'= जी४ साहसथित वस्तुथी 4 आहार मिश्र होय ते. "31'= प्रवणताथी 'मिश्रम्'= मिश्र 2 मिश्र होष छ. / / 622 / / 13/28. 'अपरिणयं दव्वं चिय'= अप्रासु द्रव्य 'भावो वा दोण्ह दाण एगस्स'= अथवा भासिमांथी मेड
SR No.035330
Book TitlePanchashak Prakaran Gujarati Bhavanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmratnavijay
PublisherManav Kalyan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages441
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size37 MB
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