________________ 202 श्री पञ्चाशक प्रकरण - 9 गुजराती भावानुवाद ગાથાર્થ :- જગતપુજ્ય જિનેશ્વરોના ગર્ભવતરણ સમયે, જન્મ સમયે, દીક્ષા સમયે, કેવલજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ સમયે અને નિર્વાણ સમયે કલ્યાણકો થાય છે એમ જાણવું. अर्थ :- 'गब्भे'= गमावतार समये 'जम्मे य'= ४न्म समये 'तहा'= तथा 'णिक्खमणे'= सीमा सेती qमते 'नाणनिव्वाणे'= सशाननी उत्पत्ति समये अने नि समये 'भुवणगुरूण'= ४गतपूज्य 'जिणाणं'= ४िनेश्वरोना'कल्लाणा' त्या 'होति'= थाय छे. 'णायव्वा'= 141. // 425 // 9/31 तेसु य दिणेसु धन्ना, देविदाई करिति भत्तिणया / जिणजत्तादीविहाणा, कल्लाणं अप्पणो चेव // 426 // 9/32 छाया :- तेषु च दिनेषु धन्या देवेन्द्रादयः कुर्वन्ति भक्तिनताः / जिनयात्रादिविधानात् कल्याणं आत्मनश्चैव // 32 // ગાથાર્થ :- કલ્યાણકોના દિવસોમાં ભક્તિથી નમ્ર બનેલા પુણ્યશાળી દેવેન્દ્રો વગેરે પોતાના આત્માનું કલ્યાણ કરનારા જિનયાત્રા આદિ અનુષ્ઠાનો વિધિપૂર્વક કરે છે. अर्थ :- 'तेसु य दिणेसु'= ते त्याओना हिवसोम भत्तिणया'= मस्तिथी नम्र 'धन्ना'= पुण्यशाजी 'देविंदाई'= हेव, असुर साहिना अधिपतिमी अर्थात हेवेन्द्र भने हानवेन्द्रो 'कल्लाणं'= इत्यानी हेतु 'अप्पणो चेव'= अभा२।४. 'जिणजत्तादीविहाणा'= विधिपूर्व नियात्राहि अनुहानी 'करिति'= 72 अर्थात् मा सभा२।४ स्यानो डेतु छ मेम मानीने नियात्राहि रेछ. // 426 // 9/32 इय ते दिणा पसत्था, ता सेसेहिं पि तेसु कायव्वं / जिणजत्तादि सहरिसं, ते य इमे वद्धमाणस्स // 427 // 9/33 छाया :- इति ते दिनाः प्रशस्ताः तस्मात् शेषैरपि तेषु कर्तव्यम् / जिनयात्रादि सहर्षं तानि च इमानि वर्द्धमानस्य // 33 // ગાથાર્થ :- આ પ્રમાણે કલ્યાણકના દિવસો ઉત્તમ છે. તેથી બીજાઓએ પણ તે દિવસોમાં સહર્ષ જિનયાત્રાદિ કરવું જોઇએ. શ્રી વર્ધમાનસ્વામીના કલ્યાણક દિવસો આ નીચેની ગાથામાં કહેવાશે તે છે. टार्थ :- ‘इय'= आम 'ते दिणा'= ते त्याहसो 'पसस्था'= भंगणारी छ. 'ता'= तेथी 'सेसेहि 'जिणजत्तादि'= नियात्रा पि'= 420. मनुष्यो 59 'तेसु'= ते हिवसोभा 'कायव्वं'= 42 मे. 'इमे वद्धमाणस्स'= वर्धमानस्वामीना मा 'सहरिसं'= प्रमोहपूर्व 'ते य'= ते त्या हिवसी (नाये 4udau) छ. // 427 // 9/33 आसाढसुद्धछट्ठी, चेत्ते तह सुद्धतेरसी चेव / मग्गसिरकिण्हदसमी, वइसाहे सुद्धदसमी य // 428 // 9/34 छाया :- आषाढशुद्धषष्ठी चैत्रे तथा शुद्ध त्रयोदशी चैव / __ मृगशीर्षकृष्णदशमी वैशाखे शुद्धदशमी च // 34 // कत्तियकिण्हे चरिमा, गब्भाइदिणा जहक्कम एते / / हत्थुत्तरजोएणं चउरो, तह सातिणा चरमोरों // 429 // 9/35 छाया :- कार्तिककृष्णे चरमा गर्भादिदिनानि यथाक्रमं एतानि / हस्तोत्तरयोगेन चत्वारि तथा स्वातिना चरमः // 35 //