________________ 60 સૂતક સંબંધી શાસ્ત્રીય સરળ સમજ है। (यथा) लोकः खल्वाधारः सर्वेषां ब्रह्मचारिणां यस्मात् / तस्मात् लोकविरुद्धं धर्मविरुद्धं च संत्याज्यं // इत्यादि / (प्रश्न) दश दिनादिक का मान कोण सूत्रमें कहा है / (उत्तर) श्री व्यवहार भाष्यवृत्ति के विषै, श्री मलयगिरिजी महाराजे दश दिनांको प्रमाण किया है। (तथा हि) जातकसूतकं नाम, जन्मानंतरं दशाहानि यावत्, मृतकसूतकं मृतानंतरं दश दिवसान् यावत् (इत्यादि) (फेर) व्यवहारभाष्यवृत्तीकें प्रथम उद्देशोमें कहा है (तथा हि) लौकिकं द्विघा-इत्वरं यावत्कथिकं च / / (तत्रेत्वरं) मृतकसूतकादि / यावत्कथिकं च छिपक चर्मकार डुंबादि (एते है) जावज्जीव शिष्टैः संभोगादिना वर्च्यते (इत्यादि) और इसीतरे अन्यमतके पद्मपूराणमें भी कहा है (यथा) मृते स्वजनमात्रेपि / सूतकं जायते किल / अस्तंगते दिवानाथे / भोजनं क्रियते कथं // 1 // इसीतरे लौकीक व्यवहार देखणा भी कल्याणका हेतु है (इससे) लौकिक प्रसिद्ध सूतकका प्रमाण भी इहां किंकित्त लिख देता हुं // सूतकं हानिवृद्धिभ्यां / दिनानि त्रीणि द्वादश / प्रसूतिस्थाने मासैकं / वासरा पंच गोत्रिणां // 1 // प्रसूतौ च मृते बाले / देशांतरमृते रणे / संताने मरणे चैव / दिनैकं सूतकं मतं // 2 // यद्दिने सूतके जाते / गते द्वादशके दिने / जिनाभिषेक पूजायां पात्रदानेन शुध्यति // 3 // पंचहा सूतकं क्षत्रे / शुद्रे पक्षकसूतकं / दशहा ब्राह्मणं विद्धि / द्वादशाहं च वैश्यके / / 4 / / सतीसूतकं हत्या च / पापं षण्मासिकं भवेत् / अन्येषामात्महत्यानां / यथापापं प्रकल्पयते // 5 // अश्वी चेटिका महिषी / गोप्रसूतिर्गृहांगणे / सूतकं दिनमेकं स्यात् / गृहबाह्ये न सूतकं // 6 // दासी दासस्तथा कन्या / जायते म्रियते यदि / त्रिरात्रं सूतकं ज्ञेयं / गृहमध्येऽतिदूषितं // 7 // यदि गर्भे विपत्तिं स्यात् / श्रवणे वापि योषितां / यावन्मासस्थितो गर्भे / तावद्दिनानि सूतकं // 8 // महिषी पाक्षिकं क्षीरं, गोक्षीरं च दिना दश / अष्टकं च अजाक्षीरं पश्चात्क्षीरं प्रवर्तकं // 9 // (इत्यादि) स्वशासन परशासन सम्मति करके सूतकगृह अवश्य वर्जनीक है // इति सूतकविचारः / /