________________ 56 સૂતક સંબંધી શાસ્ત્રીય સરળ સમજ मातापिता पंचगव्य करके अंतस्नान करे / पुत्र सहित नखच्छेदन करके गांठ जोडी दंपति जिनप्रतिमा को नमस्कार करे / तथा स्त्रियोंको सूतक पूर्ण हुए भी आर्द्रनक्षत्र दश है / कृतिका, भरणी, मूल, आर्द्रा, पुष्य, पूनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, श्रवण ये दश आर्द्रनक्षत्र है। इनमें स्त्रीको सूतकस्नान न करावे यदि स्नान करे तो फिर प्रसूति न होवे / धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा ये दो सिंहयोनि नक्षत्र जाणने और भरणी रेवती ये दो नक्षत्र गजयोनि जाणने / कदाचित् सूतक पूर्ण हुए दिन में इन पूर्वोक्त नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र आवे तब एक एक दिनके अंतरे शुचिकर्म करणा / ' સમાલોચના : અહીં કૌંસમાં લખેલ વાક્ય સૂતકમાં પૂજા બંધ ७२।वनारामओ डे२ २त नथी. 55 'मायाहिन७२ - તત્ત્વનિર્ણયપ્રાસાદ'માં આ વાકય છે. તેમાં સોળ પેઢી સુધી સૂતક ગણવાની વાત છે. સોળ પેઢીના માણસોને પૂજા બંધ કરવાની વાત તો સૂતકવાળા પણ નથી કરતા. જે લૌકિક માન્યતાને પોતે પણ સ્વીકારતા નથી તેવી માન્યતાવાળા લખાણોને આગળ ધરીને સૂતકવાળાઓ શ્રીજિનપૂજા બંધ કરાવવાનું ઘોર પાપ બાંધી રહ્યા છે. 'जैसे मेरु और सरिसव, खद्योत और सूर्य और तारें इनमें अंतर हैं तैसे यतिधर्म और गृहस्थधर्म में महत् अंतर हैं। इसी वास्ते यतिधर्म ग्रहण के पूर्ण साधनभूत, अनेक सुरासुर यतिलिगिओ का प्रीणन (पुष्ट तृप्त) करनेवाला, भगवान का पूजन, साधुओंकी सेवा इत्यादि सत्कर्म करके पवित्र ऐसे गृहस्थ धर्म को कहते है / तिस गृहस्थ धर्म में भी प्रथम 'व्यवहार' का कथन जानना और पीछे धर्म का व्यवहार भी प्रमाण ही है / क्योंकि-ऋषभादि अरिहंत गर्भाधान-जन्मकाल आदि व्यवहारों को आचरण करते है। यत उक्तआगमों में जो कहा है आगम में- तएणं समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्पापिउणो पढमे दिवसे ठिइवडियं करंति तइय (तझ्य दिवसे) चंदसूर दंसणं कुणंति छठे दिवसे धम्मजगारियं जागरंति, संपत्ते बारसाहे दिवसे विरए इत्यादि / ' સમાલોચના : આ લખાણ મુજબ ભગવાનનું પૂજન, સાધુઓની સેવા વગેરે સત્કર્મ સ્વરૂપ ગૃહસ્થધર્મને પુષ્ટ કરનારો વ્યવહાર’ (સોળ સંસ્કાર આદિ) હોય છે. જે વ્યવહાર શ્રી જિનપૂજા ગુરુસેવા આદિ