________________ સંઘભેદ નામનું મહાપાપ 40 वद्धि होवे तो उत्तर तिथि लेणी. यदुक्तं-क्षये पूर्वा तिथिः कार्या वृद्धौ कार्या तथोत्तरा, श्री वीरज्ञाननिर्वाणं कार्यं लोकानुगैरिह // 1 // ओ उदियात तिथिको छोडकर आगे पीछे तिथि करे तो तीर्थंकरकी आणानो भंग // 1 // अनवस्था एटले मरजादानो भंग मिथ्यात्व एटले समकितनो नाश 3 विराधक 4 ए चार दुषण होवे यदुक्तं - उदयंमि जा तिहि (ही) सा पमाणमिअरि (री) ए कीरमाणीए / आणाभंगणवत्थामिच्छत्तविराहणं पावे // 1 // और श्री हीरप्रश्नमें पिण कह्या है कि जो पर्युषणका पिछला चार दिवसमें तिथिका क्षय आवे तो चतुर्दशीथी कल्पसूत्र वांचणा जो वृद्धि आवे तो एकमथी वांचणा एथी पीण मालम हुवा की जेम तिथिकी हानि वृद्धि आवे ते तेमज करणी वास्ते अव के पर्युषणमें एकम दुज भेली करणी वद 11 शनिवारे प्रारंभ वद 14 मंगलवारे पाखी तथा कल्पसूत्रकी वांचना पिण सोमवारे पाखी करवी नहि वदी 30 अमावस्याये जन्मोछवः शुद 4 शनिवारे संवत्सरी करणी कोई कहै छै कि बडा कल्पकी छठ्ठकी तपस्या टूटे तथा पांचमे दिवसे पाखी करणी वास्ते पजुषणका पिछला चार दिवस में तिथिकी हानी वृद्धि आवे तो बारस तेरस भेगा करां छां वा दो तेरश करां छां इसका उत्तर के ये बात कोई शास्त्र में लिखी नथी और चोवीसकी सालमें दूज टूटी तीसकी सालमें दो चौथ हुई ते वखतें श्री अमदावाद वगेरेह प्रायें सर्व शहेरमें साधु साध्वी श्रावक श्राविकायें बारस तेरस भेली वा दो तेरशां करीं नहि कोइ गच्छमें मतमें दरसनमें शास्त्रमें नहि है कि सुदकी तिथि बदमें मे बदकी तिथी सुदमें हानि वृद्धि करणी किं बहुना आत्माथीं को तो हठ छोड कर शास्त्रोक्त धर्मकरणी करके आराधक होणा चाहिए। આજના સમયમાં વારંવાર એક વાત પ્રચારવામાં આવે છે કે “શાસ્ત્ર ગમે તે કહેતું હોય, પર્વતિથિની ક્ષય-વૃદ્ધિ ન થાય તેવી પરંપરા સદીઓથી ચાલુ છે. માટે “શાસ્ત્ર-શાસ્ત્ર'ની બૂમો નહિ પાડવાની પરંપરા પણ જિનશાસનને માન્ય છે. જે પરંપરાની દાંડી પીટવામાં આવે છે તે પરંપરાની વાત કેટલી ખોટી છે તે શ્રી ઝવેરસાગરજી મહારાજના આ હેન્ડબીલથી સમજાય છે. વિ. સં. ૧૯૩૫ની સાલમાં તેવી કોઈ સામાચારી ન હોવાથી જ શ્રી अपरेसा // 27 महा२।४ योऽ५। शोमा ४५छ ? “तिथी पिण जे प्रभाते