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________________ 57 समकित-प्रवेश, भाग-3 समकित : हाँ, बेचारे मूक पशु-पक्षियों को अपने मनोरंजन' के लिये मारना और मारकर खुश होना द्रव्य शिकार व्यसन है। प्रवेश : वास्तव में कितने कठोर परिणाम होते होंगे ऐसे लोगों के जिनको दूसरों को कष्ट पहुँचाने में मजा आता है। समकित : हमने भी पिछले जन्मों में कई बार ऐसे काम किये हैं और यदि इस जन्म में भी भगवान के बताये हुए रास्ते पर नहीं चले तो आगे भी यही करते रहेंगे। प्रवेश : नहीं, हमको अब यह सब गंदे काम कभी नहीं करने हैं। भाईश्री यह परस्त्री क्या होती है ? समकित : अपनी पत्नी के अलावा संसार की सारी स्त्रियाँ पर-स्त्री हैं। अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्रियों से प्रेम करना व उनके पास जाना यह द्रव्य पर-स्त्रीसेवन व्यसन है। बिना दी हुई वस्तु को उसके मालिक से पूछे बिना ले लेना या किसी को दे देना द्रव्य चोरी व्यसन है। प्रवेश : वास्तव में यह सातों तो बहुत गंदे काम हैं और इनसे हमारा पैसा, इज्जत, स्वास्थ्य और धर्म सबकुछ नष्ट हो जाता है। समकित : हाँ बिल्कुल। इसीलिये हमें इन सातों द्रव्य व्यसनों का और इनके मूल कारण भाव व्यसन यानि कि मोह (मिथ्यात्व), राग-द्वेष (कषाय) का त्याग पहले में पहले करना चाहिए और मोह, राग-द्वेष के त्याग का एक मात्र उपाय है स्वयं को जानना, स्वयं में अपनापन करना और स्वयं में लीन होना। जब तक हम इन भाव और द्रव्य व्यसनों का त्याग नहीं करेंगे तब तक लगातार कर्मों का बंध करके संसार में भटक-भटक कर दुःखी होते रहेंगे। प्रवेश : भाईश्री बार-बार कर्मों की बात आती है, यह कर्म क्या हैं ? समकित : कल हमको कर्म का पाठ ही तो पढ़ना है। 1.entertainment 2.females 3.root cause 4.bondage
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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