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________________ समकित-प्रवेश, भाग-2 दीपशिखा नहीं होती तो फिर तत्वों का वास्तविक-स्वरूप' किस प्रकार जाना जाता ? वस्तु स्वरुप अविचारित ही रह जाता। अतः संत कवि कहते हैं कि जिनवाणी बड़ी ही उपकार करने वाली है, जिसकी कृपा से हम तत्व का सही स्वरुप समझ सके। मैं उस जिनवाणी को बारम्बार नमस्कार करता हूँ। तके अक्षर अङ्गबाह्य के 11 अङ्गबाह्य श्रुतके राध्यापन dliom 12. पुण्डरीक १३.महापुण्डरीक 14 रिका (निषिद्धिका 12,50,00,000 (3,00000000 1,00,00,000 1,10,00,000 26,0000.000 1,80,00,000 84,00,000 1,00,00,006 26,00,00,000 60,00,000 99,99,999 96,00,000 70,00,000 1,00,00,000 1. सामायिक २.चतुर्विशतिस्तव 3. बन्दना 4 प्रतिक्रमण 5. वैनयिक कृतिकर्म ___केवलज्ञानम् ..दशवकालिक ऋजुमति-विपुलमति-मनःपर्ययज्ञानम् देशावधि-परमावधि-सर्वावधिज्ञानम् / 14. लोकबिन्दुसार-पूर्व पदानि 13. क्रियाविशाल-पूर्वे पदानि / deg0 12. प्राणावाय-पूर्वे पदानि 11. कल्याणवाद-पूर्वे पदानि 10. विद्यानुप्रवाद-पूर्वे पदानि 9. प्रत्याख्यान-पूर्वे पदानि / 8. कर्मप्रवाद-पूर्वे पदानि 7. आत्मप्रवाद-पूर्वे पदानि 6. सत्यप्रवाद-पूर्वे पदानि 5. ज्ञानप्रवाद-पूर्वे पदानि 4. अस्तिनास्तिप्रवाद-पूर्वे पदानि / 3. वीर्यानुप्रवाद-पूर्वे पदानि 2. अग्रायणीय-पूर्वे पदानि 1. उत्पाद-पूर्वे पदानि 1. परिकर्मणि पदानि 1,81,05,000 4. पूर्वगते पदानि 95.50,00,005 5. चूलिकायां पदानि 10,49,46,000 | 1. चन्द्रप्रज्ञप्ती पदानि 36,05,000 3. प्रथमानुयोगे पदानि 5,000 | 1. जलगतायां पदानि 2,09,89,200 / | 2. सूर्यप्रज्ञप्ती पदानि 5,03,000 2. सूत्रे पदानि 88,00,000 / 2. स्थलगतायां पदानि 2,09,89,200 3. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती पदानि 3,25,000 / 12. दृष्टिबादाङ्गे पदानि 1,08,68,56,005 3. मायागतायां पदानि 2,09,89,200 4. द्वीपसागरप्रज्ञप्ती पदानि 52,36,000 / 11. विपाकसूत्राओं पदानि 1,84,00,000 4. आकाशगतायां पदानि 2,09,89,200 5. व्याख्याप्रज्ञप्ती पदानि 84,36,000 / 10. प्रश्नव्याकरणाने पदानि 13,16,000 5. रूपगतायां पदानि 2,09,89,200 / 9. अनुत्तरीपपादिकदशाङ्गे पदानि 92,44,000 8. अन्तकृशाङ्गे पदानि 23,28,000 / 7. उपासकाध्ययनाङ्गे पदानि 11,70,000 6. ज्ञातृधर्मकथाङ्गे पदानि 5.56,000 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति-अड़े पदानि 2,28,000 / 4. समवायाने पदानि 1,64,000 3. स्थानाड़े पदानि 42,000 2. सूत्रकृताङ्गे पदानि 36,000 / 1. आचाराने पदानि 18,000 एकादशाङ्गे पदानि 4,15,02,000 द्वादशाङ्गे पदानि 1,12,83,58,005 मध्यमपदवर्णश्लोकसंख्या 51,08,84,621 प्रत्येकमध्यमपदाक्षरसंख्या 16,34,83,07,888 सर्वश्रताक्षरसंख्या 1,84,46,74,40,73,70,95,51.615 पर्याय-पर्यायसमासादिज्ञानानि-२०, अङ्गप्रविष्टम्-१२, अङ्गबाह्यम्-१४ इन्द्रियाणि-५, मनः-१, अर्थावग्रहादीनि-४, बहु-बहुविधादीनि-१२, व्यंजनावग्रहादीनि-४, मतिज्ञानानि-३३६ 1.real-aspect 2.un-determined
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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