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________________ 41 समकित-प्रवेश, भाग-2 समकित : नहीं, साथ तो संसार में होता है। मोक्षमार्ग में तो सबको अकेले ही चलना पड़ता है। वे नेमिनाथ के नहीं किन्तु स्वयं के स्वांतः-सुखाय मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ी थी। अब उनको नेमिनाथ संसार के दूसरे पुरुषों के समान भाई जैसे ही थे। प्रवेश : और श्रीकृष्ण ? समकित : श्री कृष्ण शांति-से अपना राज्य करते रहे। भविष्य में वे भी तीर्थंकर होंगे। प्रवेश : अरे वाह ! इसके बाद मुनिराज नेमिनाथ का क्या हुआ? समकित : दीक्षा लेने के बाद मुनिराज नेमिनाथ आत्मलीनता को बढ़ाते गये और पूर्ण (100 प्रतिशत) आत्मलीनता हो जाने पर वे पूर्ण वीतरागी, पूर्ण सुखी व सर्वज्ञ (केवलज्ञानी) हो गये। उनके समवसरण की रचना हुई। लगभग सारे देश मे उनका विहार हुआ, दिव्य उपदेश हुआ, जिससे भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का ज्ञान हुआ। प्रवेश : फिर? समकित : आयु पूरी होने पर उन्होंने गिरनार पर्वत से सिद्ध दशा (मोक्ष) को प्राप्त किया। उनके कुल में और भी लोग मुनि दीक्षा धारण कर गिरनार पर्वत से मोक्ष गये। सम्मेदशिखर के बाद गिरनार जैनियों का सबसे महत्वपूर्ण निर्वाण क्षेत्र है। प्रवेश : भाईश्री ! इस कहानी में तो बहुत आनंद आया। जिनवाणी में इतनी अच्छी-अच्छी बातें आयी कहाँ से हैं ? समकित : यह कल की जिनवाणी स्तुति पढ़कर तुमको समझ में आ जायेगा। | पूर्णता के लक्ष्य से की गई शुरुआत ही सच्ची शुरुआत है। -गरुदेवश्री / 1.peacefully 2.future
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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