________________ 25 समकित-प्रवेश, भाग-2 प्रवेश : भाईश्री ! ऐसे तो हमारा शरीर भी दिखाई देता है, तो क्या यह भी पुद्गल है ? समकित : हाँ, बिल्कुल। प्रवेश : लेकिन आपने तो कहा कि जिसमें ज्ञान गुण है, यानि कि जो जान सकता है वह जीव है ? समकित : तो? प्रवेश : तो शरीर में जो आँख है वह देखती है, कान सुनता है, नाक सूंघती है। यह सब एक तरह से जानना ही तो है ? समकित : हाँ, यह सब जानना ही है, लेकिन यह जानने वाला शरीर या उसके अंग' नहीं बल्कि शरीर के अंदर (साथ) रहने वाला जीव है, यानि कि आत्मा है या कहो कि हम स्वयं हैं। प्रवेश : लेकिन आत्मा तो दिखती नहीं। आँख वगैरह ही जानने का काम करती हुई दिखती हैं ? समकित : यदि ऐसा है तो फिर मृत्यु हो जाने पर आँखें क्यों नहीं देखती, कान क्यों नहीं सुनते, नाक क्यों नही सूंघती ? कुछ भी जानने का काम क्यों नहीं होता ? सुख-दुख का अनुभव क्यों नहीं होता? प्रवेश : भाईश्री ! यह तो हमने कभी सोचा ही नहीं कि ऐसा क्यों होता है ? समकित : ऐसा इसलिए होता है कि जो जानने वाला जीव यानि आत्मा था वो इस गति के शरीर को छोड़कर दूसरी गति के शरीर में चला गया। प्रवेश : भाईश्री ! यह गति क्या होती हैं ? समकित : वह मैं कल बताऊँगा। 1.parts 2.soul 3.experience