________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 289 देवी सीता ने अग्नि-परिक्षा पार भी कर ली। देवी सीता के पुण्योदय से उनके प्रवेश करते ही अग्नि का कुण्ड पानी के तालाब में बदल गया। देवी सीता की जय-जयकार होने लगी। प्रवेश : फिर क्या दिक्कत हुई ? समकित : अब देवी सीता ने अयोध्या जाने से मना कर दिया / संसार की असारता' का विचार कर उनको वैराग्य आ गया और पृथ्वी आर्यिका से दीक्षा लेकर आत्मसाधना में लीन हो गयी। प्रवेश : फिर श्रीराम व लव-कुश आदि का क्या हुआ? समकित : कुछ समय के बाद श्रीराम ने भी संसार की असारता का विचार कर, बारह भावनाओं का चिंतवन कर, दीक्षा धारण कर ली और आत्म साधना की पूर्णता कर मोक्ष चले गये। हनुमान जी व लव-कुश आदि भी समय आने पर दीक्षा धारण कर आत्मसाधना की पूर्णता कर मोक्ष चले गये। प्रवेश : यह बारह भावना क्या होती हैं ? समकित : वह मैं कल बताऊँगा। प्रवेश : तो हम भी श्रीराम व हनुमान जी आदि की पूजा करते हैं ? समकित : हाँ, करते तो हैं लेकिन उनकी रागी नहीं बल्कि वीतरागी और सर्वज्ञ (अरिहंत) अवस्था की। प्रवेश : मैंने तो उनकी वीतरागी प्रतिमायें कभी नहीं देखी ? समकित : तीर्थंकर अरिहंतों की प्रतिमा में ही सभी सामान्य केवली अरिहंतों की कल्पना की जाती है। प्रवेश : क्या इस कहानी के सारे पात्र मोक्ष चले गये ? समकित : नहीं, आर्यिका सीता समाधिमरण करके स्वर्ग में प्रतींद्र हुई। रावण 1.blankness 2.imagination