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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 279 समकित : क्यों यह चौदह राजू का लोक (विश्व) किसके सहारे से है ? ये सिद्ध-शिला, ये स्वर्ग, ये पृथ्वी', ये नर्क आदि किसके सहारे से हैं ? ये तारे, गृह व नक्षत्र आदि किसके सहारे से हैं ? यह सब कौनसी छत से लटके-हुये हैं या टेबल पर रखे हुए हैं ? जब इतना बड़ा लोक खुद के सहारे से हो सकता है तब यह छोटा सा पंखा क्यों नहीं ? प्रवेश : ओह ! ऐसा तो कभी विचार ही नहीं किया। समकित : विचार नहीं किया इसीलिये तो आजतक संसार में भटक-भटक कर अनंत दुःख भोग रहे हैं और भगवान इसको स्वीकार करके इस भटकन और दुःख से मुक्त हो गये हैं। प्रवेश : लेकिन ऐसा कहते तो हैं कि छत से पंखा लटका है ? समकित : ऐसा कहना व्यवहार है लेकिन ऐसा यथार्थ मानना मिथ्यात्व है। व्यवहार नय जैसा है वैसा कथन नहीं करता निमित्त आदि की अपेक्षा से किसी को किसी में मिलाकर कथन करता है। व्यवहार नय अपेक्षा सहित होने से सम्यकज्ञान का ही अंश है इसलिये ऐसा कहना व्यवाहर नय होने से सम्यक है, लेकिन ऐसा यथार्थ मानना उल्टी मान्यता होने से मिथ्यात्व" है, अनंत संसार व दुःख का कारण है। प्रवेश : मतलब यह व्यवहार" चलाने के लिये कहने व समझने-समझाने की बात है, यथार्थ मानने की नहीं ? समकित : हाँ, जो परमार्थ /यथार्थ (परम-सत्य) को नहीं जानता ऐसे अज्ञानी को समझाने के लिये व्यवहार नय का सहारा लिया जाता है इसलिये इस अपेक्षा से व्यवहार नय भी उपयोगी है। प्रवेश : भाईश्री ! प्राग्भाव और प्रध्वंसाभाव को आत्मा पर कैसे घटायेंगे? 1.earth 2. stars 3. planets 4.constellations 5.hanged 6.universe 7.accept 8. intention 9.fraction 10. correct 11.false-belief 12. formality 13. supreme-truth 14.help 15.useful
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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