________________ 258 समकित-प्रवेश, भाग-8 नाम 'भाव - निमित्त / नाम | भेद / भाव अशुद्ध कर्म का उदय | औदयिक 4 गति, 4 कषाय, 3 वेद, 6 लेश्या | मिथ्यात्व, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व (21) अस्थायी कर्म का उपशम औपशमिक | औपशमिक सम्यक्त्व | औपशमिक चारित्र (02) एकदेश | कर्म का क्षायोपशमिक 4 ज्ञान, 3 मिथ्याज्ञान, 3 दर्शन | क्षयोपशम |5 क्षायोपशमिक लब्धियाँ, क्षायो. सम्यक्त्व | क्षायो. चारित्र, संयमासंयम (18) स्थायी शुद्ध कर्म का क्षय | क्षायिक |9 क्षायिक लब्धियाँ (09) पारिणमिक निरपेक्ष पारिणामिक जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व (03) | जैसे कि चार्ट में अत्यंत स्पष्ट है किः 1. औदयिक भावः जीव की अशुद्ध-पर्याय' को औदयिक भाव कहते हैं। जीव की अशुद्ध पर्याय का माप और कथन द्रव्य (पुद्गल) कर्म के उदय के माध्यम से किया जाता है, इसलिये जीव की अशुद्ध पर्यायों को (निमित्त अपेक्षा) औदयिक भाव कहते हैं। मिथ्यात्व, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व, 4 कषाय, 4 गति, 3 वेद, 6 लेश्या यह सब जीव की अशुद्ध पर्यायें होने से औदयिक भाव कहलाते प्रवेश : जीव की अशुद्ध पर्यायों (भावों) का माप और कथन पुद्गल कर्म के उदय के माध्यम से क्यों किया जाता है ? गोचर नहीं हैं। यानि कि उनको अनुभव तो किया जा सकता है लेकिन शब्दों से नहीं कहा जा सकता। इसलिये जिन्हें शब्दों से कहा जा सकता है ऐसे पुद्गल कर्मों पुद्गल के गणित के माध्यम से जीव के परिणामों का माप व कथन होता है। 1. impure-states 2. scale 3.narration 4.through 5.experienceable 6. narratable 7. experience 8.calculation