________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 249 यह बात और है कि चौथे और पाँचवें गुणस्थान में शुद्ध-उपयोग कभी-कभार' और कम तल्लीनता वाला ही होता है और सातवें, आठवें, नौवें व दसवें आदि गुणस्थान तो शुद्ध-उपयोगमय ही हैं। यहाँ दसवें गुणस्थान में लोभ कषाय अबुद्धिपूर्वक होने के साथ-साथ अत्यंत सूक्ष्म भी है। 11.उपशांत कषाय गुणस्थानः जैसे मैले पानी में फिटकरी डालने से उसका मैल नीचे बैठ जाता है और पानी बिल्कुल साफ दिखने लगता है लेकिन जरा सी हल-चल से वह मैल फिर से ऊपर आकर पानी को फिर से गंदा कर देता है। उसी प्रकार इस गुणस्थान में कषाय उपशमित हो गयी है, लेकिन इस गुणस्थान का अंतर्मुहूर्त काल पूरा होने पर वह फिर से उखड़ जाती है और जीव नियम-से वापिस नीचे के गुणस्थानों में गिर जाता है। यहाँ जीव की कषाय उपशमित (दबी-हुयी) है इसलिये इस गुणस्थान का नाम उपशांत-कषाय मुनि है। 12. क्षीण-कषाय गुणस्थानः मिथ्यात्व (दर्शन मोहनीय) का पूर्णरूप से नाश तो क्षायिक सम्यकदर्शन होने पर ही हो जाता है और अब दसवें गुणस्थान के अंतिम समय में मुनिराज कषाय (चारित्र-मोहनीय) को भी पूर्णरूप से, जड़ से नष्ट कर देते हैं और बारहवां गुणस्थान यानि क्षायिक चारित्र प्रगट करके हमेंशा के लिये पूर्ण वीतरागी हो जाते हैं। कषायों का क्षय (क्षीणता) हो जाने से इस गुणस्थान का नाम क्षीणकषाय मुनि है। मिथ्यात्व (दर्शन मोहनीय) और कषाय (चारित्र मोहनीय) यानि कि संपूर्ण मोहनीय कर्म से रहित क्षीण-कषाय मुनि हैं। इसप्रकार पाँचवें गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक का कथन" चारित्र गुण की मुख्यता से है। 1.rarely 2.less-immersedness 3.minute 4.alum 5.dirt 6.disturbance 7.suppress 8. period 9. compulsorily 10.abolishment 11. last 12.narration