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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 245 चारित्र प्राप्त करते हैं, लेकिन अंतर्मुहूर्त पूरा होते ही ग्यारहवें गुणस्थान से वापिस दसवें फिर नौवें फिर आठवें फिर सातवें और फिर छठवें गुणस्थान में पहुँच जाते हैं। कभी-कभी तो कोई-कोई मुनिराज पहले गुणस्थान में तक पहुँच जाते हैं। हालांकि यह बहुत कम ही होता है। लेकिन इसकी संभावना है। प्रवेश : ऐसा क्यों होता है कि ग्यारहवें गुणस्थान में जीव चौथे स्तर की (पूर्ण) आत्मलीनता/वीतरागताका अनुभव कर वापिस गिर जाता है व पहले जैसी तीसरे स्तर की आत्मलीनता/वीतरागता वाला हो जाता है ? समकित : क्योंकि उपशम श्रेणी चढ़ने वाले मुनिराज की आत्मलीनता से कषाय जड़ से नष्ट नहीं हो पाती है सिर्फ उपशमित ही हो पाती है। जो चीजें उपशमित की जाती हैं वह उखड़ती जरूर हैं। प्रवेश : और क्षपक श्रेणी ? समकित : क्षपक-श्रेणी चढ़ने वाले मुनिराज आत्मलीनता बढ़ाकर (अधः प्रवृत्तकरण परिणाम कर) सातवें से आठवें फिर नौवें फिर दसवें और व कषायों को जड़ से नष्ट करते हुये दसवें से सीधे बारहवें गुणस्थान में पहुँचकर पूर्ण आत्मलीनता (वीतरागता) का अनुभव करते हैं और हमेंशा के लिए ऐसे ही हो जाते हैं यानि कि क्षायिक (निर्दोष व स्थाई) चारित्र प्राप्त करते हैं और फिर कभी नीचे नहीं गिरते। हमेंशा पूर्ण वीतरागी रहते हैं। प्रवेश : क्या, जैसे चौथे गुणस्थान में क्षायिक सम्यकदृष्टि जीव की श्रद्धा गुण की पर्याय हमेंशा के लिये पूर्ण शुद्ध हो गयी थी वैसे ही यहाँ बारहवें गुणस्थान में क्षीण-कषाय मुनि की चारित्र गुण की पर्याय हमेंशा के समकित : हाँ बिल्कुल ! इसीलिये क्षायिक (निर्दोष और स्थाई) सम्यकदृष्टि ही क्षपक श्रेणी चढ़ सकते हैं। औपशमिक (निर्दोष लेकिन अस्थाई) या क्षायोपशमिक (दोष सहित व अस्थाई) सम्यकदृष्टि नहीं। 1.although 2.possibility 3.root 4. abolish 5. suppress 6. flawless & stable
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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