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________________ 239 समकित-प्रवेश, भाग-8 प्रवेश : और क्षायिक सम्यकदर्शन ? समकित : यदि यह क्षायोपशमिक सम्यकदृष्टि तीव्र-पुरुषार्थ' करके दर्शन मोहनीय (मिथ्यात्व) के तीनों टुकड़ों को जड़ से नष्ट कर दे तो क्षायिक सम्यकदृष्टि हो जाता है यानि कि अनंतकाल तक सम्यकदृष्टि ही रहता है और कभी-भी चौथे गुणस्थान से नीचे नहीं गिरता बल्कि ऊपर ही ऊपर उठता है। क्षायिक सम्यकदर्शन से पहले औपशमिक व क्षायोपशमिक सम्यकदृष्टि के मिथ्यात्व के तीनों टुकड़े मौजूद तो थे लेकिन वह उनका यथायोग्य उदय नहीं आने दे रहे थे मगर क्षायिक सम्यकदृष्टि ने अपने तीव्र पुरुषार्थ द्वारा उन तीनों टुकड़ों को जड़ मूल से नष्ट कर दिया है। प्रवेश : तीव्र पुरुषार्थ मतलब ? गुरूजी : स्वयं को जानने, स्वयं में अपनापन करने व स्वयं लीन होने का तीव्र पुरुषार्थ। प्रवेश : दर्शन-मोहनीय (मिथ्यात्व) के तीन टुकड़े मिथ्यात्व, सम्यक-मिथ्यात्व व सम्यक्त्व प्रकृति हैं। तीसरे टुकड़े को सम्यक्त्व क्यों कहा गया है ? समकित : हमने देखा न कि सम्यक्त्व नाम के टुकड़े का उदय आने पर जीव का सम्यक्त्व छूटता नहीं बस औपशमिक से क्षायोपशमिक हो जाता है। इसलिये दर्शन-मोहनीय (मिथ्यात्व) के टुकड़े को भी यहाँ उपचार-से सम्यक्त्व प्रकृति कह दिया गया है। प्रवेश : दर्शन-मोहनीय (मिथ्यात्व) टुकड़ों में बँट गया इसका मतलब यही मतलब है न कि मिथ्यात्व तीन श्रेणियों में बँट गया है: एक तीव्र दूसरी मध्यम और तीसरी जघन्य ? समकित : हाँ, ऐसा समझ सकते हैं। प्रवेश : यह तो बहुत ही रोचक विषय है। दूसरे व तीसरे गुणस्थान के बारे में भी बताईये ना 1.intense-efforts 2.destroy 3.infinity 4.arise 5.formally 6.intensities 7.high 8.medium 9.low 10.interesting
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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