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________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 227 इ) मासिक प्रतिक्रमणः पूरे महीने में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। ज) चातुर्मासिक प्रतिक्रमणः पूरे चार महीने में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। क) वार्षिक प्रतिक्रमण (सांवत्सरिक)ः पूरे साल भर में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। ल) युग प्रतिक्रमणः पूरे पाँच साल में लगे हुये दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। प्रवेश : यह विषय तो बहुत ही रोचक है। प्रतिक्रमण के इतने भेद हो सकते हैं यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। समकित : और सुनो! 3. प्रयोजन के आधार पर प्रतिक्रमण के भेदः अ) ईर्या-पथ प्रतिक्रमणः ईर्या समिति पूर्वक गमन करने पर भी जो दोष लग जाते हैं उनके लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। ब) भक्तपान प्रतिक्रमणः आहार-चर्या (गोचरी) में लगने बाले दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। स) ज्ञानाचार प्रतिक्रमणः शास्त्र-स्वाध्याय में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। द) उत्तमार्थ प्रतिक्रमणः सल्लेखना (संथारा) लेते समय, दीक्षा से लेकर तब तक लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। इ) सर्वातिचारिक प्रतिक्रमणः पूरी दीक्षा पर्याय में लगे हुये दोषों के लिये जीवन के उपान्त्य-समय में प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। प्रवेश : यह सुनकर तो हमें भी दीक्षा लेने के भाव पैदा हो गये। 1.interesting 2.purpose 3.second-last
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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