________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 223 प्रवेश : प्रत्याख्यान कितनी तरह का होता है ? समकित : वैसे तो प्रत्याख्यान कई तरह का होता है लेकिन मुख्य भेद तो निम्न है: 1. नाम प्रत्याख्यानः गलत और गंदे नामों का उच्चारण नहीं करूँगा। 2. स्थापना प्रत्याख्यानः रागी और अल्पज्ञ कुदेवों की प्रतिमा आदि की विनय और जिनेद्र देव की प्रतिमा आदि की अविनय नहीं करूँगा। 3. द्रव्य प्रत्याख्यानः जो पद के लायक नहीं है ऐसे भोजन, वसतिका', पुस्तक व उपकरण आदि चीजों का किसी भी कारण से ग्रहण नहीं करूँगा। 4. क्षेत्र प्रत्याख्यानः जो जाने लायक नहीं है ऐसे गंदे, हिंसा-पोषक, मिथ्यात्व-पोषक संयम में बाधक व तीव्र-कषाय में निमित्त स्थान पर नहीं जाऊँगा। 5. काल प्रत्याख्यानः अकाल में भोजन, गमन, शयन व स्वाध्याय आदि नहीं करूँगा। 6. भाव प्रत्याख्यानः शुभ-अशुभ (अशुद्ध) भावों का त्याग या कहो कि शुद्ध-भावों को प्रगट करना भाव (निश्चय) प्रत्याख्यान है। 6. कायोत्सर्ग (व्युत्सर्ग): काय-आदि का उत्सर्ग (त्याग) कायोत्सर्ग है। शारिरिक-क्रियाओं को बंद कर शरीर में अपनापन और लीनता छोड़कर आत्मा में अपनापन और लीनता करना निश्चय कायोत्सर्ग है और ऐसे निश्चय कायोत्सर्ग का प्रयास करना व्यवहार कायोत्सर्ग है। निश्चय कायोत्सर्ग शुद्ध-भाव रूप होने से संवर-निर्जरा का कारण है व व्यवहार कायोत्सर्ग शुभ-भाव रूप होने से पुण्य-बंध का कारण है। कायोत्सर्ग का जघन्य काल 108 श्वास-उच्छ्वास है। प्रवेश : कायोत्सर्ग की विधि क्या है ? 1.shelter 2.reason 3.obstructive 4.inappropriate-time 5.walk 6.sleep 7.body-etc 8.physical-activities 9.effort 10.minimum