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________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 221 प्रवेश : और चतुर्विंशति स्तव ? समकित : 2. चतुर्विंशति स्तवः जैसे कि नाम से ही समझ में आ रहा है-चौबीस तीर्थंकरों का विधिपूर्वक स्तवन करना ही चतुर्विंशति स्तव है। यह भी छः प्रकार का है: 1. नाम स्तवः चौबीस तीर्थंकरों का 1008 नामों के द्वारा स्तवन करना 2. स्थापना स्तवः चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमा का स्तवन करना। 3. द्रव्य स्तवः समवसरण में विराजमान चौबीस तीर्थंकरों के स्वरूप का स्तवन करना। 4. क्षेत्र स्तवः चौबीस तीर्थंकरों की कल्याणक भूमियों का स्मरण करते हुए स्तवन करना। 5. काल स्तवः चौबीस तीर्थंकरों की कल्याणक तिथियों का स्मरण करते हुये स्तवन करना 6. भाव स्तवः चौबीस तीर्थंकरों जैसे गुणों (स्वभाव) का स्वयं में अनुभव करना भाव (निश्चय) स्तव है। स्तव भी सामायिक की तरह ही दिन में तीन बार, तीनों संधि कालों (सुबह-दोपहर-शाम) में किया जाता है। प्रवेश : और वंदना? समकित : 3. वंदनाः किसी एक तीर्थकर, जिन प्रतिमा, जिन मंदिर, आचार्य परमेष्ठी व जिन तीर्थ आदि की विधिपूर्वक भक्ति करना वंदना है। वंदना भी सामायिक व स्तव की तरह ही दिन में तीन बार, तीनों संधि कालों में की जाती है। स्तव की तरह इसके भी छः प्रकार समझना।
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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