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________________ छः आवश्यक समकित : आवश्यकः अवश (स्वाधीन') होने के लिये अवश्य रूप से करने लायक कार्यों को आवश्यक कहा जाता है। स्वाधीनता का अर्थ है स्व में लीन होना और यही अवश्य रूप से करने लायक कार्य है। इसलिये निश्चय से तो आत्मलीनता ही एकमात्र आवश्यक है। ऐसे आत्मलीनता रूप निश्चय आवश्यक के साथ छः प्रकार का शुभ राग व क्रिया व्यवहार से आवश्यक कहने में आते हैं, यानि कि व्यवहार आवश्यक हैं। प्रवेश : ये व्यवहार आवश्यक कौन-कौन से हैं ? समकित : व्यवहार आवश्यक छः होते हैं: 1. सामायिक 2. चतुर्विंशति स्तव 3. वंदना 4. प्रतिक्रमण 5. प्रत्याख्यान 6. कायोत्सर्ग (व्युत्सर्ग) प्रवेश : कृपया समझाईये। समकित : ठीक है ! 1. सामायिकः जैसे कि हम पहले भी चर्चा कर ही चुके है कि सामायिक का अर्थ है-समता भाव। यानि कि आत्मालीनता द्वारा समस्त पर द्रव्यों में राग-द्वेष का अभाव होकर समता-भाव प्रगट होना ही निश्चय सामायिक है। निश्चय से वही स्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग है। 1.independent 2.practices 3.essential
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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