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________________ 202 समकित-प्रवेश, भाग-7 बाजारु, अमर्यादित और हिंसक द्रव्यों से पूजा करने से पाप का बंध होता है क्योंकि अन्य क्षेत्र में किया हुआ पाप तो धर्म क्षेत्र में नष्ट हो जाता है लेकिन धर्म क्षेत्र में किया हुआ पाप कहाँ जाकर नष्ट होगा? वह तो वज्रलेप के समान मजबूत हो जाता है। उसे नष्ट करना मुश्किल हो जाता है। प्रवेश : पूजा की विधि क्या है ? समकित : सबसे पहले छने जल से स्नान करके, धुले हुये शुद्ध, सूती, सादा, सफेद एवं पारंपारिक-वस्त्र' पहिनकर, तिलक लगाकर, विनय सहित, विधि-विधान पूर्वक जिनेन्द्र देव की पूजा करनी चाहिये। प्रवेश : सुना है कि रेशमी-वस्त्र पहिनकर पूजा करनी चाहिये ? समकित : बिल्कुल नहीं ! आजकल रेशम बहुत ही हिंसा से बनता है। एक मीटर रेशम का कपड़ा बनाने के लिये हजारों रेशम के कीड़ों को मारा जाता है इसलिये रेशम तो पूजा में क्या कभी भी पहिनने लायक नहीं है। उसको तो छूने में भी पाप है। इसी प्रकार हिंसक सौंदर्य प्रसाधन-सामग्री, परफ्यूम, स्प्रे आदि लगाकर और चमड़े के बैग में रखे वस्त्र पहिनकर पूजा नहीं करनी चाहिये। प्रवेश : पूजा करते समय और किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिये ? समकित : पूजा के लिये प्लास्टिक आदि के उपकरण, स्टील के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिये। पीतल", ताँबा", चाँदी', सोना" आदि उच्च धातुओं" के बर्तन ही पूजा के लायक हैं। प्रवेश : और ? समकित : बाकी कला 1.traditional-wear 2.modesty 3.systematically 4.silk-fabric 5.silk 6.silkworms7.cosmetics 8.plastic 9.equipments 10.utensils 11.brass 12.to copper 13.silver 14.gold 15.good-metals
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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