________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 195 देव की पूजा करने का शुभ राग व क्रिया व्यवहार देव पूजा है। व्यवहार देव पूजा भी दो प्रकार की है: व्यवहार 1.भाव-पूजा 2.द्रव्य-पूजा सच्चे देव का स्वरूप समझकर उनके वीतरागता-सर्वज्ञता आदि गुणों का भावपूर्वक स्तवन करना भाव-पूजा है और यही कार्य विधिपूर्वक शुद्ध और प्रासुक द्रव्यों का अवलंबन (सहारा) लेकर करना द्रव्य-पूजा प्रवेश : और गुरु की वैयावृत्ति करना यह गुरु उपासना है ? समकित : 2. गुरु-उपासनाः गुरु यानि कि आत्मा। आत्माकी उपासना (लीनता) रूप निश्चय गुरु-उपासना के साथ सच्चे गुरु (आचार्य, उपाध्याय और साधु) का स्वरूप समझ कर उनके बताये हुए मार्ग पर चलकर उनकी वैयावृत्ति आदि करना व्यवहार गुरु उपासना है। 3. स्वाध्यायः स्व का अध्ययन (लीनता) रूप निश्चय स्वाध्याय के साथ जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गये वीतरागता का पोषण करने वाले सतु शास्त्रों का पठन-पाठन, अध्ययन-मनन आदि करना व्यवहार स्वाध्याय है। व्यवहार स्वाध्याय के पाँच भेद हैं: 1. वाचना- वीतरागी सत् शास्त्रों को स्वयं पढ़ना और दूसरों को पढ़ाना। 2. पृच्छना- शंका-समाधान के लिये प्रश्न करना। 3. अनुप्रेक्षा- स्वाध्याय के विषय (वस्तु-स्वरूप) का चिंतन-मनन करना। 4. आम्नाय- शास्त्र-पाठों और गाथाओं को शुद्धि-पूर्वक पढ़ना। 1.systematically 2.service 3.doubt-clearance 4.chanting