________________ पाँचवे गुणस्थान वाले श्रावक के अणुव्रत समकित : जैसा कि हमने पिछले पाठ में देखा कि पाँचवें गुणस्थान वाले व्रती श्रावक की भूमिका योग्य आत्मलीनता (वीतरागता) निश्चय व्रत प्रतिमा है और उसके साथ पाया जाने वाला बारह प्रकार के व्रतों को पालने का शुभ राग, व्यवहार व्रत प्रतिमा व तत्संबंधी बाहय क्रिया व्यवहार से व्यवहार व्रत प्रतिमा कहने में आती है। निश्चय व्रत-प्रतिमा यानि कि वीतरागता तो एक ही प्रकार की है लेकिन व्यवहार व्रत-प्रतिमा यानि कि शुभ-राग बारह प्रकार का होता है।आज हम व्यवहार व्रत-प्रतिमा यानि कि बारह व्रतों की चर्चा करेंगे। पहली प्रतिमा वाले श्रावक को अष्टमूल गुण पालन और सप्तव्यसन त्याग की प्रतिज्ञा है। स्थूलरूप-से' पाँच अणुव्रत इनमें शामिल हो जाते हैं। अतः पहली प्रतिमा वाले श्रावक को उपचार से अणुव्रत कहने में आते हैं। प्रवेश : कैसे ? समकित : अष्टमूल गुण पालन यानि कि तीन-मकार और पाँच उदम्बर फलों के त्याग में स्थूल अहिंसाणुव्रत आ गया व सप्त-व्यसन के त्याग में स्थूल रूप से सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत आ गया और इनके त्याग में लोभ कषाय की मंदता हुई तो परिग्रह-परिमाण व्रत भी आ गया। इसलिये पहली प्रतिमा में भी उपचार से पाँच अणुव्रत कहे गये है। असल रूप में तो दूसरी व्रत प्रतिमा से ही अणुव्रत पलते हैं। प्रवेश : अच्छा! समकित : दूसरी प्रतिमा से पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत, प्रतिज्ञा पूर्वक पलतें हैं, जो कि निम्न हैं : 1. roughly 2.include