________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 173 जो गुप्ति आदि का स्वरूप तुमने बताया है, वह शुभ-राग रूप होने से, व्यवहार गुप्ति आदि होने से, व्यवहार सम्यकचारित्र के भेद हैं इसलिये इन्हें संवर नहीं, संवर का निमित्त-कारण' (सहचर) कहा गया है। वास्तविक संवर तो आत्मलीनता द्वारा प्रगट हुआ वीतराग-भाव रूप निश्चय सम्यकचारित्र यानि कि निश्चय गुप्ति आदि ही हैं। प्रवेश : यह बात तो ठीक है लेकिन यदि हम ऐसा कहेंगे तो अज्ञानी (अनात्म ज्ञानी) लोग व्यवहार चारित्र को भी छोड़ देंगे। समकित : व्यवहार-चारित्र को छोड़ने की बात तो तब आयेगी जब अज्ञानी को व्यवहार-चारित्र प्रगट हुआ हो। सच्चा व्यवहार-चारित्र तो निश्चयचारित्र के साथ ही प्रगट होता है यानि कि ज्ञानी (आत्मज्ञानी) को ही प्रगट होता है। क्योंकि निश्चय के बिना तो सच्चा व्यवहार होता ही नहीं। अज्ञानी का बाह्य गुप्ति आदि पालने का शुभ राग, वीतराग-भाव रूप निश्चय-चारित्र के अभाव में व्यवहार से भी सम्यक चारित्र नाम नहीं पाता। प्रवेश : भाईश्री ! भले ही अज्ञानी (अनात्म-ज्ञानी) को व्यवहार चारित्र भी न हो लेकिन आपने कहा कि बाह्य गप्ति आदि पालने का शुभ राग होता है। लेकिन ऐसा उपदेश सुनकर तो वह स्वच्छंदी हो जायेगा, शुभ राग छोड़कर अशुभ राग में चला जायेगा? समकित : अरे भाई ! वास्तव में तो, अपने स्वरूप व जिन आज्ञा से बाहर विचरण करने के कारण मिथ्यादृष्टि जीव स्वच्छंद तो है ही और रही बात शुभ-भाव छोड़कर अशुभ-भाव में जाने की तो उपदेश तो सिर्फ ऊपर चढ़ने के लिये दिया जाता है, नीचे गिरने के लिये नहीं। यदि कोई ऊपर न चढ़कर नीचे गिरे तो इसमें उपदेश का क्या दोष है ? / यहाँ तो शुभ-भाव से भी ऊपर, शुद्ध भाव प्रगट करने का उपदेश दिया जा रहा है। लेकिन कोई शुभ-भाव से शुद्ध-भाव में न जाकर, उल्टा शुभ-भाव से भी नीचे अशुभ-भाव में जाये तो इसमें उपदेश का क्या दोष है ? 1.formal-cause 2.actual 3.preachings 4.fault