________________ मंगल समकित : पिछली कक्षा में तुमने मंगल का मतलब पूछा था। आज हम मंगल का मतलब समझेंगे। जो पापों को गलावे (खत्म करे) व सुख को लाये उसे मंगल कहते हैं। प्रवेश : ऐसे मंगल कौन हैं ? समकित : तुम रोज ही चत्तारि दण्डक पाठ में पढ़ते हो। चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। प्रवेश : भाईश्री ! यह हम पढ़ते तो हैं लेकिन इसका मतलब हमें नहीं पता। समकित : बिना मतलब समझे कोई भी चीज रटू तोते की तरह पढ़ते रहना यह समझदार लोगों का काम नहीं है। प्रवेश : भाईश्री ! अब से हम समझकर ही कोई पाठ पढ़ा करेंगे। समकित : तो सुनो ! इस पाठ का अर्थ ऐसा है-लोक में चार मंगल हैं, अरिहंत भगवान मंगल हैं, सिद्ध भगवान मंगल हैं, साधु मंगल हैं और केवली भगवान का बताया हुआ वीतरागी जैन धर्म मंगल है। प्रवेश : णमोकार मंत्र में तो पाँच परमेष्ठी की बात की थी लेकिन यहाँ चत्तारि दण्डक में तो अरिहंत, सिद्ध व साधु इन तीन परमेष्ठियों को ही मंगल कहा? समकित : आचार्य और उपाध्याय परमेष्ठी भी तो साधु ही हैं। बस उनके पास संघ की कुछ जिम्मेदारियाँ अधिक हैं। पर हैं तो आखिर साधु ही। और फिर मोक्ष जाने के लिए अरिहंत, सिद्ध और साधु बनना तो जरुरी है लेकिन आचार्य व उपाध्याय बनना नहीं। 1.additional 2.ultimately