________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 123 जैसे-एक घड़ा' बनने का कार्य हुआ। जब हम इसके कारण खोजने वहाँ जाते हैं जहाँ घड़ा बनता है तो पहली नजर में जो कारण हमें दिखाई पड़ते हैं, वह हैं- कुम्हार, चक्र, दण्ड' आदि। प्रवेश : ये कुम्हार, चक्र, दण्ड आदि उपादान कारण हैं या निमित्त कारण ? समकित : जैसा कि हमने परिभाषा में देखा कि जो स्वयं कार्य रूप परिणमित होता है उसे उपादान कारण कहते हैं। कुम्हार, चक्र, दण्ड आदि तो घड़े रूप परिणमित (परिवर्तित) होते नहीं इसलिये वे उपादन कारण नहीं हो सकते। लेकिन कुम्हार के योग और उपयोग और चक्र, दण्ड आदि की क्रिया ऐसी जरूर है कि इन पर घड़े (कार्य) की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप आ सके इसलिये कुम्हार, चक्र, दण्ड आदि घड़े बनने के कार्य के निमित्त कारण कहलाते हैं। प्रवेश : यदि घड़े बनने के कार्य में कुम्हार, चक्र, दण्ड आदि निमित्त कारण हैं तो फिर उपादान कारण क्या है ? समकित : मिट्टी, घड़े रूप परिणमित होती है इसलिये मिट्टी घड़े बनने के कार्य का उपादान कारण है। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि उपादान कारण से अनुकूल निमित्त कारण को मिलाने पर कार्य होता है ? समकित : नहीं। हमने निमित्त कारण की परिभाषा में देखा कि निमित्त कारण कार्य में अनुकूल नहीं होता। सिर्फ कार्य हो जाने पर उस पर कार्य में अनुकूल होने का आरोप भर आता है। दसरा, जब निमित्तों की स्वयं की योग्यता होती है तभी वह मिलते हैं। रागी जीव तो मात्र उनको मिलाने का विकल्प" करता है लेकिन यदि उपादान कारण न हो तो कितना भी विकल्प करने पर कार्य में अनुकूल सी लगने वाली यह सामग्रियाँ” नहीं मिलती और यदि किसी तरह मिल भी जायें तब भी उपादान कारण न होने पर कार्य नहीं होता। और जब तक कार्य नहीं होता तब तक तो किसी भी सामग्री पर 1.earthen-pot 2.potter 3.potters-wheel4.potters-stick 5.thoughts-words-actions 6.concentration 7.execution 8.defination 9.favored 10.ripeness 11.worries 12.stuffs