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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 121 समकित : निश्चय से (वास्तव में) तो वीतरागता ही चारित्र है, राग नहीं। लेकिन आंशिक' वीतरागता के साथ पाये जाने वाले शुभ राग को निमित्त-कारण (सहचर) जानकर व्यवहार (उपचार) से चारित्र कहने में आता है। क्योंकि जो वस्तु जैसी है उसको वैसा कहना यह निश्चय-नय का कथन है और जो वस्तु जैसी नहीं है निमित्त आदि की अपेक्षा से उसे वैसा कहना यह व्यवहार-नय (असद्भूत) का कथन है। प्रवेश : यह निमित्त-कारण क्या है ? क्या कारण भी कई प्रकार के होते हैं ? समकित : आगे हमारी चर्चा का विषय यही है। सम्यग्दर्शन कोई अपूर्व वस्तु है। शरीर की खाल उतारकर नमक छिड़कने वाले पर भी क्रोध नहीं किया- ऐसे व्यवहार चारित्र इस जीवने अनन्त बार पाले हैं, परन्तु सम्यग्दर्शन एक बार भी प्राप्त नहीं किया। लाखों जीवों की हिंसा के पाप की अपेक्षा मिथ्यादर्शन का पाप अनन्त गुना है। सम्यक्त्व सरल नहीं है, लाखों करोड़ों में किसी विरले जीवको ही वह होता है। सम्यक्त्वी जीव अपना निर्णय आप ही कर सकता है। सम्यक्त्वी समस्त ब्रह्माण्ड के भावों को पी गया होता है।...सम्यक्त्व कोई अलग ही वस्तु है। सम्यक्त्व रहित क्रियाएँ इकाई बिना शून्य के समान है। ...हीरे का मूल्य हजारों रुपया होता है, उसके पहले पड़ने से खिरी हुई रज का मूल्य भी सैकड़ों रूपया होता है उसी प्रकार सम्यक्त्व-हीरे का मूल्य तो अमूल्य है, वह यदि मिल गया तब तो कल्याण हो ही जायेगा परन्तु वह नहीं मिला तब भी ‘सम्यक्त्व कुछ अलग ही वस्तु है' - इस प्रकार उसका माहात्म्य समझकर उसे प्राप्त करने की उत्कण्ठारूप रज भी महान लाभ देती है। -गुरुदेवश्री के वचनामृत अहो ! इस अशरण संसार में जन्म के साथ मरण लगा हुआ है। आत्मा की सिद्धि न सधे तब तक जन्म-मरण का चक्र चलता ही रहेगा। ऐसे अशरण संसार में देव-गुरु-धर्म का ही शरण है।... -बहिनश्री के वचनामृत 1.partial 2.actual-perception 3.narration 4.formal-perception
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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