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________________ 118 समकित-प्रवेश, भाग-5 प्रवेश : बाकी रह गये राग/कषाय का क्या अर्थ है ? समकित : यह तो हम समझ ही चुके हैं कि अविरत् सम्यकदृष्टि को पहले स्तर की आत्मलीनता/वीतरागता है और शेष तीन स्तर की अनात्मलीनता संबंधी राग बाकी है। देश व्रती श्रावक को दूसरे स्तर की आत्मलीनता /वीतरागता है और आखरी दो स्तर की अनात्मलीनता/राग बाकी है। सकल व्रती मुनिराज को तीसरे स्तर की आत्मलीनता/वीतरागता है व आखरी एक स्तर की अनात्मलीनता/राग बाकी है। तो अविरत् सम्यक दृष्टि के बाकी रह गये राग में शुभ राग का अंश बहुत कम ओर अशुभ राग का अंश ज्यादा होता है इसलिये उसको मात्र सम्यकदर्शन के चार लिंग, आठ अंग पालने का और सम्यकदर्शन में लगने वाले पच्चीस दोषों से दूर रहने का शुभ-राग सहज-रूपसे आये बिना नहीं रहता जिसे व्यवहार सम्यक्त्वाचरण चारित्र कहते हैं। प्रवेश : यह सम्यकदर्शन के चार लिंग आठ अंग और पच्चीस दोष कौनसे हैं? समकित : सम्यकदर्शन के चार लिंगः | 1. | प्रशम कषायों की यथयोग्य मंदता / | 2. | संवेग संसार-शरीर-भोगों से भय व धर्म में रुचि | 3. | अनुकंपा | जीव-दया | 4. | आस्तिक्य देव-शास्त्र-गुरु व तत्वों पर अटल-श्रद्धा / सम्यकदृष्टि निम्न पच्चीस दोषों से दूर रहता है: | 1. आठमद / | 2. | आठ दोष 8 | 3. | तीन मूढ़ता / 3 4. छः अनायतन 6 कुल दोष / 25 1.remaining 2.fraction 3.automatically 4.fear 5.interest 6.compassion 7.firm-belief 8.flaws
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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