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________________ व्यवहारसम्यकदर्शन-ज्ञान-चरित्र समकित : जैसा कि हमने पिछले पाठ में देखा कि स्वयं को जानना निश्चय सम्यकज्ञान, स्वयं में अपनापन करना निश्चय सम्यकदर्शन और स्वयं में लीन होना निश्चय सम्यकचारित्र है। जब तक चारित्र की पूर्णता यानि की पूर्ण आत्मलीनता/वीतरागता (शुद्धि) नहीं हो जाती तब तक चारित्र गुण की पर्याय में वीतरागता के अंश के साथ-साथ भूमिका-योग्य' शुभ-अशुभ राग (अशुद्धि के अंश) भी मौजूद रहते हैं। इसप्रकार जब तक पूर्ण वीतरागता (शुद्धि) न हो तब तक निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र के साथ पाया जाने वाला शुभ-राग (अशुद्धि का अंश) व्यवहार से सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र कहने में आता है। प्रवेश : एक शुभ-राग (चारित्र गुण की आंशिक शुद्ध-पर्याय का अशुद्ध-अंश) को ही व्यवहार से सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र तीनों कहते हैं ? समकित : हाँ, इस निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र के साथ पाया जाने वाला सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा (बहुमान) का शुभ राग व्यवहारसम्यकदर्शन, सच्चे शास्त्रों के स्वाध्याय का शुभ राग व्यवहारसम्यकज्ञान और भूमिका-योग्य बाह्य-आचरण पालने का शुभ राग व क्रिया व्यवहार-सम्यकचारित्र कहने में आता है। प्रवेश : भूमिका-योग्य मतलब ? समकित : भूमिका-योग्य का मतलब है-मोक्षमार्ग के गुणस्थान योग्य (लायक)। प्रवेश : मोक्षमार्ग के गुणस्थान कौन-कौन से हैं ? समकित : चौथे से बारहवें तक। प्रवेश : तेरहवें-चौदहवें गुणस्थान मोक्षमार्ग में नहीं आते ? 1.deservedly 2.external-conducts 3.physical-activities
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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