________________ 114 समकित-प्रवेश, भाग-5 निश्चय देश चारित्र का अर्थ है स्वयं में दूसरे स्तर की लीनता होना यानि कि अप्रत्याख्यनावरणीय कषाय का अभाव होना। निश्चय सकल चारित्र का अर्थ है स्वयं में तीसरे स्तर की लीनता होना यानि कि प्रत्याख्यानावरणीय कषाय का अभाव होना। यथाख्यात चारित्र का अर्थ है स्वयं में चौथे स्तर की (पूर्ण) लीनता होना यानि कि संज्वलन कषाय का अभाव होना। ध्यान रहे यहाँ निश्चय सम्यक्त्वाचरण चारित्र, देश चारित्र, सकल चारित्र और यथाख्यात चारित्र की चर्चा चल रही है। इनके व्यवहार स्वरूप की चर्चा अगले पाठ में होगी। प्रवेश : निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान में तो ऐसे कोई भेद नहीं है फिर निश्चय सम्यक चारित्र में ये भेद क्यों ? समकित : यह बहुत अच्छा प्रश्न है। स्वयं का ज्ञान यानि कि निश्चय सम्यकज्ञान और स्वयं में अपनापन यानि कि निश्चय सम्यकदर्शन तो चौथे गुणस्थान में ही पूर्ण रूप से हो जाता हैं लेकिन स्वयं में लीनता के स्तर यानि कि चारित्र क्रम-क्रम से ही बढ़ता है। प्रवेश : गुणस्थान मतलब ? समकित : अभी तो ऐसा समझो कि संसार से मोक्ष की तरफ जाने वाली 14 सीढ़ियों को गुणस्थान कहते हैं। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि स्वयं में लीनता एक-साथ पूर्ण रूप से नहीं होती? समकित : हाँ बिल्कुल ! प्रवेश : यदि निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र, सच्चे सुख का कारण है तो फिर पहले स्तर की आत्म-लीनता (सम्यक्त्वाचरण चारित्र) वाले व्यक्ति से दूसरे स्तर की आत्म-लीनता (देश चारित्र) वाले व्यक्ति को सुख ज्यादा होता होगा?