________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 107 समकित : भाई ! यदि शुभ-भाव, अशुद्ध-भाव हैं तो अशुभ-भाव भी तो अशुद्ध-भाव ही हैं। शुभ-भाव मंद' अशुद्ध-भाव हैं व अशुभ-भाव तीव्र अशुद्ध-भाव हैं लेकिन हैं तो दोनों अशुद्ध-भाव ही। प्रवेश : तो फिर हम क्या करें? समकित : शुद्ध-भाव को प्रगट करने का पुरुषार्थ करो, तो शुभ-अशुभ भाव अपने-आप घट जायेंगे, लेकिन इतना याद रखना कि मोक्षार्थी जीव जब तक पूरी तरह से शुद्ध-भाव में नहीं पहुँच जाता तब तक वह अपनी भूमिका अनुसार, अशुभ-भाव से छूट कर शुभ-भाव में लगता है। इस प्रकार का भाव उसे सहज-रूपसे (हठ बिना के) आये बिना नहीं रहता। लेकिन उसका लक्ष्य मात्र पूर्ण शुद्ध-भाव प्रकट करने का ही रहता है। प्रवेश : यदि मोक्षार्थी शुभभाव का ही लक्ष्य रखे तो? समकित : भाई ! मोक्षार्थी का लक्ष्य तो मोक्ष ही है और शुभ-भाव का फल तो स्वर्ग आदि ही है और स्वर्ग आदि तो संसार हैं। जो संसार का कारण है, वह मोक्ष का कारण नहीं हो सकता। इसलिए मोक्ष का कारण तो सिर्फ शुद्ध-भाव ही है। जो अंतरंग-की यथार्थ-रुचि पूर्वक शुद्धभाव का लक्ष्य रखता है उसको भूमिका अनुसार शुभ-भाव सहज-रूपसे" हुए बिना नहीं रहते। यदि न हो तो चौदह ब्रह्माण्ड को शून्य होना पड़े, लेकिन जिनका लक्ष्य ही शुभ-भाव का है उनको शुद्धभाव प्रकट होने का तो प्रश्न ही नहीं, बल्कि शुभ-भावों पर भी प्रश्नचिन्ह' रहता है। यदि कदाचित् (कभी) शुभ-भाव होते भी हैं तो हल्की-जाति के ही हो पाते हैं। प्रवेश : जैसे? समकित : जैसे हम जब इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे थे तब तीन तरह के एण्ट्रेस-एक्जाम होते थे। सबसे उच्च स्तर का एक्जाम था IIT, मध्यम स्तर का था IEEE व निम्न स्तर का था PET / जो विद्यार्थी IIT की तैयारी करते थे उनका IEEE का एक्जाम तो सहज निकल जाता था 1.low 2.intense 3.effort 4.reduce 5.deservedly 6.aim 7.cause 8.inner-self 9.keen-interest 10.automatically 11.question-mark 12.low-quality 13.automatically