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________________ सिद्ध-सारस्वत डीन के रूप में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए मैं और प्रोफेसर (डॉ.) सुदर्शन लाल जैन दोनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यापन करते थे। मैं सिविल इंजिनियरिंग में था और प्रो. जैन संस्कृत विभाग, कला सङ्काय में थे। जैन होने के नाते हम लोगों का परिचय प्रगाढ़ होता चला गया। एक दूसरे के घर आना-जाना होता रहा। आप जैन विद्या के प्रकृष्ट विद्वान् हैं साथ-साथ एक बहुत ही सरल और सहृदय व्यक्ति हैं। जैनधर्म सम्बन्धी शङ्काओं का समाधान मुझे आपसे मिलता था। आप क्रमश: उन्नति के शिखर पर बढ़ते हुए काशीहिन्दूविश्वविद्यालय के सबसे बड़े कला सङ्काय के डीन (प्रमुख) बने। इस सर्वोच्च पद पर रहकर आपने बड़ी कुशलता से प्रशासन किया और अनेक नए आयामों की स्थापना की। आपका ऑफिस और घर का दरबाजा हमेशा सभी (अध्यापक, छात्र, कर्मचारी) के लिए खुला रहता था। सभी आपसे प्रसन्न रहते थे। विडला छात्रावास के भी प्रमुख थे और छात्रों की कुशलता से सुरक्षा करते थे। इतिहास में पहली बार उनको छात्रों ने अभिनन्दन किया। कुलपति, रजिष्ट्रार, फाइनेंस ऑफीसर आदि भी आपके प्रशासन से खुश रहते थे। आपने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए। आपके इस अभिनन्दन ग्रन्थ के माध्यम से आपको मङ्गल कामना प्रेषित करते हैं। भाभी जी श्रीमती डॉ. मनोरमा जी भी बधाई की पात्र हैं। प्रो. कमलकुमार जैन एफ - 70 काल्का जी, नई दिल्ली आलोचना और छिद्रान्वेषण से दूर प्रो. सुदर्शनलाल जी और भाभी जी श्रीमती डॉ. मनोरमा जी से मेरा और मेरे परिवार का परिचय बहुत पुराना है। जब से उन्होंने वाराणसी में निवास करना प्रारम्भ किया था तभी से वे मेरे परिचय में हैं। उनके मधुर व्यवहार और शास्त्रीय ज्ञान ने मुझे आकर्षित करना प्रारम्भ किया और धीरे-धीरे मेरी उनके प्रति आत्मीयता और सम्मान बढ़ता चला गया। उनका स्नेह भी मेरे और मेरे परिवार के प्रति सदैव रहा है। उनमें मैंने कहीं भी अहङ्कार नहीं देखा है। वे कशी के जैन विद्वानों में वरिष्ठ रहते हुए भी अति विनम्र और सरल हैं। वे जटिल से जटिल प्रश्न का उत्तर भी बड़ी ही सरलता से दे देते हैं। उनके समाधानों में धर्म के शास्त्रीय पक्ष के साथ-साथ व्यावहारिक पक्ष की भी प्रधानता रहती है। प्रो. साहब से मैंने जब-जब धार्मिक या सामाजिक विषयों पर चर्चा की है तब-तब मैंने देखा है कि उनकी दृष्टि सदैव गुण-ग्राहक रही है वे आलोचना और छिद्रान्वेषण करने से हमेशा बचते हैं। पण्डित जी पन्थ निरपेक्ष रहकर हर स्थान से सिर्फ अच्छाई ग्रहण करने पर बल देते हैं। जितना ज्ञान उन्हें दिगम्बर शास्त्रों का है उतना ही ज्ञान श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों तथा जैनेतर दर्शनों का भी है। संस्कृत भाषा पर आपका पूर्ण अधिकार है। आप सदैव धर्म के मूल सिद्धान्तों और आगम के अनुकूल जैन धर्म की समीचीन मान्यताओं के संरक्षण पर बल देते हैं। मुझे धर्म सभाओं और सामाजिक कार्यक्रमों में अनेक बार उनके व्याख्यानों को सुनने का अवसर मिला है। वे गूढ़ से गूढ़ विषय का सार सरल भाषा में व्यक्त करने में निष्णात हैं। वे काशी में निर्विवादरूप से सर्वमान्य हैं। जब से आप वाराणसी से सेवानिवृत्त होकर भोपाल निवास करने लगे हैं तब से काशी की जैन समाज आपको सदैव याद करती रहती है। मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है कि आपके सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। आपने अपने अमूल्य ज्ञान से समाज पर जो उपकार किया है समाज उसके लिए सदैव आपकी ऋणी रहेगी। मैं जिनेन्द्र प्रभु से यह मङ्गल कामना करता हूँ कि आप और भाभी जी सदैव स्वस्थ और दीर्घायु बने रहें और मेरे और मेरे परिवार पर सदैव आपका आशीर्वाद बना रहे। वाराणसी
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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