________________ सिद्ध-सारस्वत जी के निर्देशन में शोध कार्य सम्पन्न किया तथा पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने अनेक छात्रों को पी-एच.डी. कराई। आपसे हमारा पारिवारिक आत्मीय सम्बन्ध आज भी है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय विगत सौ वर्षों से शैक्षणिक गुणवत्ता एवं शोध के लिये दुनिया में जाना जाता है। राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से काशी हिन्दू वि.वि. की स्थापना भारत रत्न पं. मदन मोहन मालवीय जी ने सन 1916 ई. में की थी। आपने अपने सङ्काय में अनेक नियुक्तियाँ कराई। आप स्वाभिमानी तथा निर्भीक स्वभाव के हैं। कई नए पाठ्यक्रम प्रारम्भ कराए। प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन को आपके कार्यों की गुणवत्ता के आधार पर भारत सरकार महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। अन्य अनेक सम्मान आपको मिले हैं। आप एक सुलझे हुए विद्वान् हैं। कुशल प्रशासक भी हैं। छात्रों के हित चिन्तक हैं। मैं आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। डॉ.विवेकानन्द जैन पुस्तकालयाध्यक्ष, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् मैं इसको अपने जीवन का सर्वोच्च पुण्य मानता हूँ कि महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्चशिक्षा ग्रहण करने का सौभाग्य मुझे मिला और मिले वहाँ अध्यापन तथा संस्कार की दृढ़ नींव के नियामक आदरणीय प्रो. सुदर्शन लाल जैन जैसे गुरु।। 1981 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सम्बद्ध सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल से ही बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला सङ्काय में स्नातक (आनर्स) प्रथम वर्ष में प्रवेश प्राप्त किया। इसमें प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व तथा भारतीय दर्शन के साथ मैंने संस्कृत को आनर्स विषय के रूप में चुना। आनर्स विषय संस्कृत होने के कारण संस्कृत विभाग के प्राध्यापकों से अध्ययन तथा वहाँ की शैक्षणिक गतिविधियों तथा छात्र प्रतियोगिताओं में सहभागिता का अवसर निरन्तर मिलता रहा। इसी सक्रियता के कारण विभाग के प्राध्यापकों के सम्पर्क में आने का अवसर मिला। हमारे गुरुजी आचार्य प्रो० विश्वनाथ भट्टाचार्य, प्रो० वीरेन्द्र कुमार वर्मा, प्रो0 श्रीनारायण मिश्र, प्रो० कमला प्रसाद सिंह, प्रो० जयशंकरलाल त्रिपाठी, प्रो० रामायण प्रसाद द्विवेदी, प्रो० उमादेवी जोशी इत्यादि प्राध्यापकों ने स्नातक स्तर पर हमको कक्षाओं में अध्यापन किया और जीवन को नयी दिशा प्रदान की। मैं इसको अपना पुण्य मानता हूँ की सभी प्राध्यापकों ने मुझको अपार स्नेह तथा आशीर्वाद प्रदान किया। प्रो० सुदर्शनलाल जैन जी इनमें से अन्यतम रहे। 1981 से 1984 तक स्नातक कक्षाओं में तीन वर्ष तक अध्यापन के समय आप विभाग में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत थे। आपने हमको अनेक विषयों में काव्यों के साथ न्यायशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'तर्कसंग्रह' को पढ़ाया। हमारे जैसे नवप्रवेशी छात्र के लिए विषय नया था तथा ग्रन्थ शास्त्रीय संस्कृत भाषा में लिखित। आपकी अध्ययन शैली, छात्रानुरूप विषय का स्पष्ट प्रतिपादन तथा कठिनाई महसूस होने पर सटीक व सरल समाधान ने उस ग्रन्थ को भी अन्य ग्रन्थों के समान सरल और सुबोध बना दिया। आपने पंक्तियों को याद करने पर बल दिया। हम अक्षरश: याद कर गए और समझा बाद में उसका महत्त्व। उस समय परीक्षा में तो सर्वोत्तम अङ्क मिले ही पर आज भी आवश्यकता पड़ने पर अध्यापन के दौरान उस ग्रन्थ की पंक्तियों को कक्षाओं में बोलते समय हमको आपके द्वारा दी गयी प्रेरणा का स्मरण हो जाता है और प्रसन्नता होती है कि हमने उसको महत्त्व दे ग्रन्थ कण्ठस्थ किया। स्नातक कक्षा में तीनों वर्ष आप हमारे अध्यापक रहे। इस प्रकार आपका आशीर्वाद प्राप्त होता रहा। 1987 में संस्कृत विभाग से ही स्नातकोत्तर (साहित्य) कक्षा उत्तीर्ण करने के दौरान ही हमने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) की राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कनिष्ठ शोधवृत्ति (जे.आर.एफ.) परीक्षा उत्तीर्ण कर ली और उसी वर्ष विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो0 विश्वनाथ भट्टाचार्य जी के शोधनिर्देशन में पीएच0 डी0 की उपाधि हेतु पंजीकरण हुआ। 1992 में उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वृत्ति की समस्या सामने आ खड़ी हुई। कहीं अवसर नहीं दिख रहे थे। तभी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सम्बद्ध दयानन्द महाविद्यालय (डी.ए.वी कालेज) में संस्कृत के प्रवक्ता का