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________________ सिद्ध-सारस्वत कवीनां को दोषः? स तु गुणगणानामवगुणः।। अर्थात् भगवान् राम अनन्तगुणगणनिलय हैं। किसी महाकवि ने भगवान् के किन्हीं गुणों को लेकर चित्रण किया, किन्हीं ने किन्हीं अन्य गुणों का। अत: अनेकों रामायण बनते गये। अतः ऐसे ही ईश्वर-कृपापात्र प्रो. जैन के भी अनेकों गुण हैं। इनकी विनम्रता, साधुता, विद्वत्ता, सहृदयता, दयादाक्षिण्यता, शिष्यों पर कृपा, गुरुजनों के प्रति दृढ़ निष्ठा आदि गुण हैं। गोस्वामी जी ने कहा है - कीरति भनिति भूति भक्ति सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई।। कीर्ति-भनिति (काव्य) और ऐश्वर्य वही श्रेयस्कर है जिसमें माँ सुरसरिता के समान सबका हित हो। माँ गंगा यह नहीं देखतीं कि उसमें कौन मज्जन (स्नान) कर रहा है, किसी भी भाव से मजन करने वाले को अपना शैत्य, पावनत्व एवं मुक्ति प्रदान करती हैं। इस प्रकार से प्रो. जैन समान भाव से 'सर्वजन हिताय' की भावना से पूर्णतया ओतप्रोत हैं। मैंने अपने छात्र जीवन से लेकर अद्यावधि इनके सुचरित्र एवं सदाशयता का अनुभव किया है। मैं इनके सेवाकाल का प्रथमशोधच्छात्र हूँ, अतः इन्हें अन्तरङ्ग रूप से देखने का अवसर मुझे प्राप्त है। संस्कृत-पालि विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अप्रितम विद्वान् प्रो. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य (पूज्य गुरुदेव) की इन पर महनीय कृपा थी। इन्होंने उनसे संस्कृत ज्ञान के साथ-साथ 'शोध-प्रबन्ध' की सम्पूर्ति कराने की अद्भुत क्षमता प्राप्त की थी। उसी अद्भुत ज्ञान का प्रयोग करके इन्होंने मेरी शोधोपाधि को पूर्णता प्रदान की। अपनी अलौकिक कृपा से मुझे लघु भ्राता के समान ज्ञान आदर एवं सम्मान प्रदान किया। इनकी सहधर्मचारिणी श्रीमती मनोरमा जैन की स्नेहिल कृपा मेरे ऊपर उसी प्रकार बरसती थी जैसे एक माता अपने पुत्र के ऊपर बरसाती है। हमने अपने छात्र जीवन में कभी भी अनुभव नहीं किया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे महासागर में मेरा कोई संरक्षक नहीं है। हम आपको भूरिशः प्रणाम करते हैं, ऐसे सन्त स्वरूप संस्कृत और विविध शास्त्रों में गति रखने वाले कृपामय सुदर्शन लाल जैसे पुत्र रत्न को लोकहित में आविर्भूत करने वाली माँ सरस्वती देवी एवं श्रद्धेय सिद्धेलाल जैन को। जिससे काशी ही नहीं अपितु भारतवर्ष में अनेकशः शिष्यों को आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक ज्ञान प्राप्त हुआ। हम प्राणिपात करते है उन औघडदानी भगवान् विश्वनाथ भगवान् शिव और माँ अन्नपूर्णा को, जिन्होंने आप जैसे विद्वान् की काशी में लीला एवं कर्मस्थली बनायी। मैं दृढ़तापूर्वक यह कह सकता हूँ कि प्रो. सुदर्शन लाल सचमुच सुदर्शन व्यक्तित्व-सम्पन्न, ज्ञान-सम्पन्न, सौम्यस्वरूप एवं प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। इनका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने पर हम अतिशय आह्लादित हैं। अत: मैं अपनी वाक्य-सुमनाञ्जलि ऐसे महापुरुष को अर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। सौम्य स्वरूप सनेह सनातन, दिव्यता ज्यों प्रतिरोम बसी है। माथे पे शील ललाट पे कान्ति, औ अधरान पे मन्द हँसी है।। ऐसा स्वभाव प्रभाव का मेल है कीरति की कविता निकसी है। लाल सुदर्शन जीवें सदा 'परमेश्वर' भाव सुधा बरसी है।। डॉ. परमेश्वरदत्त शुक्ल 'रामायणी' प्राचार्य, श्री रामानुज संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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