________________ सिद्ध-सारस्वत तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों से आप राष्ट्रपति के महत्त्वपूर्ण पुरस्कार से भी अलंकृत हो चुके हैं। यह हमारे लिए गौरवपूर्ण है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ जैसे शोध संस्थान में आप निदेशक जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन रहे। हमारी समाज के लिए यह गौरव का विषय है कि देश ही नहीं पूरे एशिया में अपना एक अहम स्थान रखने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्कृत विभाग में 38 वर्षों तक जहां अध्यापन कराकर सैकडों उत्कृष्ट छात्रों का निर्माण किया। इसी के साथ आपने सङ्काय प्रमुख जैसे महत्त्वपूर्ण पद को भी शोभायमान कर एक मिशाल कायम की है। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे भी समय-समय पर आपका मार्गदर्शन मिलता रहा है। जब मैं वाराणसी के सुप्रसिद्ध श्री स्याद्वाद महाविद्यालय में अध्ययनरत था उस समय आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में पदस्थ थे। पांच वर्ष वाराणसी में अध्ययनकाल में आपका स्नेह और दिशा-निर्देशन मुझे हमेशा मिलता रहा। अनेक बार आपके घर आनाजाना होता था। स्याद्वाद महाविद्यालय में आपका आना-जाना था। आपकी सह धर्मिणी आदरणीया डा0 मनोरमा जी का भी खूब स्नेह मिलता था। प्रो० साहब जब वाराणसी के लंका रोड स्थित नरिया जैन मन्दिर के मंत्री थे उस दौरान मुझे वहां धार्मिक विधि-विधान कराने आप बुलाते थे। काशी जैन समाज भी आपको खूब आदर और सम्मान देती थी। इस मांगलिक अवसर पर मेरी वीर प्रभु से प्रार्थना है कि उन्हें चिरायु करें, वे हमेशा स्वस्थ रहें, यही उनके चरणों में मेरी विनयाञ्जलि है। अभिनन्दन ग्रन्थ के लिए हमारी हार्दिक शुभकामनाएं। आशा है, आपका यह अभिनन्दन ग्रन्थ अनेक लोगों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा। डॉ. सुनील जैन 'संचय' प्रचारमंत्री,अ0 भा० दि0 जैन शास्त्रिपरिषद्, ललितपुर प्रो० सुदर्शनलाल जैन : एक सौम्य व कर्मनिष्ठ व्यक्तित्व आचारवत्वादाचार्यः कर्मनिष्ठो विचारवान्। सुदर्शनो गुरुर्विज्ञः, कल्पतां श्रेयसे सदा।। भावरूपकुसुमानामञ्जलिरियं समर्प्यते भक्त्या। तुच्छं वस्त्वपि श्रद्धार्पितमतिशयितं हि जायते सत्यम्।। आदरणीय प्रो० सुदर्शनलाल जैन सर के साथ प्रारम्भिक सम्बन्ध तथा परिचय की मूल कड़ी पूज्य पिताजी महामहोपाध्याय स्व0 डॉ. कपिलदेवपाण्डेयजी थे। पूज्य पिताजी के साथ आप का सम्बन्ध अत्यन्त घनिष्ठ मित्रता का रहा है। कदाचित् मेरे जन्म के पूर्व 1962 ई0 का है। आप दोनों ही महनीय विद्वानों ने दर्शनशास्त्र के अति विशिष्ट स्वनामधन्य विद्वान् स्व0 प्रो० सिद्धेश्वर भट्टाचार्यजी के अन्तेवासित्व में शोधकार्य पूर्ण कर पी-एच0डी0 की उपाधि अधिगत की है। आप दोनों की मैत्री का यह सम्बन्ध इतना पुराना तथा इतना व्यापक रहा है की उन सबकी प्रत्यभिज्ञा करके लेखबद्ध करना सहज कार्य नहीं है। फिर भी प्रो० जैन सर से सम्बंधित वस्तुचित्र मेरे मानस पटल पर सदैव अंकित रहते हैं और जिनके कारण हमारा अन्तर्मन उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्वसम्पन्न मनस्वी तथा एक सम्माननीय जैन परम्परा के पोषक आदर्श पुरुष, श्रेष्ठ विद्वान् व विशिष्ट गुरु के रूप में देखता है और उन्हें निर्व्याज गौरव प्रदान करता है। पूज्य पिताजी के मैत्री सम्बन्ध की प्रगाढ़ता सारस्वत व सामाजिक पथ से होती हुई दिनानुदिन बढ़ती गई। वर्ष 1991 में मेरे एम्0 ए0 करने के पश्चात् पी-एच0डी0 हेतु शोध निर्देशक की भूमिका के लिए सहर्ष स्वीकृति प्रदान करना प्रो0 जैन सर का पूज्य पिताजी के प्रति स्नेहपूर्ण सम्बन्ध के अनुबंध का निदर्श ही था। पग-पग पर मैं प्रो0 जैन सर का स्नेह भाजन बना जो कि आज भी मुझे सहज ही प्राप्त है। नि:संदेह आप जैनदर्शन व साहित्य तथा प्राकृत भाषा के विशिष्ट विद्वान् होने के साथ ही एक विशिष्ट शिक्षक, कुशल प्रशासक, उत्कृष्ट कर्मयोगी व सहज सौम्य अभिभावक रहे हैं। आप अनेकों जैन शोध संस्थानों के संरक्षक व मार्गदर्शक हैं। आप के निर्देशकत्व में शोध कार्य कर मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ। 'यत्रापि कुत्रापि गताः भवन्ति हंसा: महीमण्डलमंडनाय' उपर्युक्त सूक्ति अक्षरशः हमें प्रो0 जैन सर में देखने