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________________ सिद्ध-सारस्वत सौम्य और अद्भुत प्रतिभा के धनी डॉ0 सुदर्शनलाल जी जैन किसी के व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण होता हैं कि सामने वाला बरबस उससे प्रभावित हो जाता है। सकारात्मक सोच के कारण जो किरणें सम्मुख प्रस्फुटित होती हैं, उनसे जुड़ने का प्रयास करता है और उनकी ओर से अपनत्व मिलने से आपसी परिचय के उपरान्त उनके गरिमामय वार्तालाप से अपने आप जुड़ जाता है और वार्तालाप से उस व्यक्ति का अनुभव, ज्ञान, गंभीरता और विद्वत्ता का आभास होने से अनायास जुड़ने का मन होने लगता है या जुड़ जाता है। ऐसे ही बहुआयामी प्रभिता के धनी जिन्होंने पूरा जीवन ज्ञान-पिपासा के लिए समर्पित किया और उसके उपरान्त जो ज्ञान उन्होंने संजोया, उसे उन्होंने अपने छात्रों और साथियों को भरपूर लुटाया और एक लम्बी विरासत के रूप में अनेकों को समरूप बनाया, ये निम्न पंक्तियों से सिद्ध होता हैं - नात्यद्भुतं भुवन-भूषण भूतनाथ, भूतैर्गुणैर्भुवि भवंतमभिष्टुवंताः। तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति।। मेरी भेंट डॉक्टर साहब से एक कार्यक्रम में हुई और उनसे परिचय के उपरान्त उनके द्वारा बहुत आत्मीयता प्रदर्शित की गई। मैं तो मात्र लेखक साहित्यकार होने के कारण उन्हें व्हाटऐप्स के जरिये अपनी बात पहुंचाता था उस पर उनका प्रोत्साहन बराबर मिलता रहा और फिर मैंने पुनः उनके निवास स्थान पर जाकर दर्शन लाभ और आशीर्वाद प्राप्त किया। आपके पास अद्भुत आगम ग्रन्थों का खजाना है उन्होंने बहुतेरे छात्रों को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित कराने का सौभाग्य प्राप्त किया जो उपरोक्त श्लोक के द्वारा सार्थक प्रयास है। बिना कोई बाह्य आडम्बर के, आर्जव भाव से, ज्ञान-पिपासुओं को सञ्चित ज्ञान रूपी धन को प्रवाहित करने को आतुर रहते हैं। बस प्यासा उनके पास आये और जीवंत ज्ञानकोष का दोहन करे। ___ कुछ भेटों ने मुझे जीवंत ज्ञान पुंज से जो भी शिक्षा मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिला वह मेरे लिए अमूल्य हैं। मैं उनके शतायु जीवन की मङ्गल कामना करता हूँ और भविष्य में उनका आशीर्वाद मुझे मिलता रहेगा ऐसा विश्वास है। डॉक्टर अरविन्द जैन संस्थापक, शाकाहार परिषद्, भोपाल विद्वत् गौरव हमारे आदर्श सारस्वत विद्वान् राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित तथा अन्य अनेक सम्मानों से विभूषित हमारे आदर्श आदरणीय प्रोफेसर सुदर्शनलाल जी विशिष्ट साहित्यानुरागी, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, परोपकारी, प्राच्य भाषाओं के संरक्षण और विकास में अनवरत संलग्न हैं। समय के अनन्त अनवरत प्रवाह में लोग अपने अस्तित्व की रक्षा करने में असमर्थ होते हैं पर कुछ चंद लोग ऐसे भी होते हैं जो समय के प्रवाह को समय की इस धारा को रोकने में समर्थ होते हैं। जीवन यात्रा में वे अपने पद-चिह्न छोड़ जाते हैं, जो उनके उत्तराधिकारियों के लिए पथ-प्रदर्शन का कार्य करते हैं। उन्हीं में से एक यथानाम सम्यग्दर्शन के साथ सुदर्शन और शोधार्थियों को सम्यक् मार्गदर्शन प्रदान करने वाले प्रो. सुदर्शन जी हैं जो कि हम सभी के लिए आदर्श हैं। जिनके मार्गदर्शन में लगभग अर्धशतक शोधार्थियों ने पी-एच.डी. की उपाधियां प्राप्त की हैं। ग्रन्थलेखन, सम्पादन से अनेक अचेतन कृतियों के साथ आपने शोधार्थियों, विद्यार्थियों को उचित मार्गदर्शन देकर अनेक चेतन कृतियों का भी निर्माण किया है। श्रुताराधक, साहित्य मनीषी के 75वें अवतरण दिवस पर अभिनन्दन ग्रन्थ 'सिद्ध-सारस्वत' का प्रकाशन हम सब के लिए अभिनन्दनीय है। आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आने वाली पीढियां प्रेरणा प्राप्त करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अनेक अवसरों पर मुझे आपका आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है जिसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ। एकहि अक्षर ज्ञान का जो गुरु देय बताय।
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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