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________________ इसी प्रकार द्वितीय सर्ग में राजा सुमित्र के पराक्रम एवं पद्मावती के सौन्दर्य का मोहक चित्रण कवि प्रतिभा के प्रकर्ष का सूचक है। यहाँ रानी पद्मावती के अनिर्वचनीय सौन्दर्य का चित्रण है। काव्य में उपमा , उत्प्रेक्षा, रूपक, भ्रान्तिमान्, अर्थान्तरन्यास, परिसंख्या, अतिशयोक्ति, विरोधाभास आदि अलङ्कारों के बड़े सुन्दर प्रयोग हैं। प्रोफेसर सुदर्शनलाल जैन जी ने इस काव्य की साहित्यिकसमालोचना करते हुए अलङ्कृति, सौन्दर्य का विधिवत् निरूपण किया है। प्रकृति के आलम्बन एवं उद्दीपन विभाव के अनेक रमणीय चित्र नवम सर्ग के ऋतु वर्णन एवं प्रथम सर्ग के मगध देश एवं राजगृह के वर्णन में स्थान-स्थान पर प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ एक पद्य द्रष्टव्य है, राजगृह में नीलमणि एव स्फटिक मणि से जटित जिनालयों की कान्ति आकाश में प्रतिबिम्बित हो रही थी, इससे हरी घास एवं जल की भ्रान्ति से आकृष्ट होकर दौड़ते हुए घोड़ों को रोकने में असमर्थ होकर मानो सूर्य ने उत्तरायण और दक्षिणायन का विभाजन किया - यत्रास्मगर्भार्कजिनालयत्विच्छत्रेऽभ्रमध्ये तपनो हठेन। दूर्वाम्बुबुद्धया द्रवदश्वरोधक्लेशासहः किं कुरुतेऽयने द्वे।।" काव्य की भाषा सहज, सरल, सानुप्रासिक एवं प्रवाह युक्त है। प्रायः वैदर्भी एवं पाञ्चाली रीति के स्थल प्राप्त हैं। इसी प्रकार मगध देश की वृक्ष-पंक्तियों का वर्णन करते हुए कवि की पदशय्या दर्शनीय है- - तरङ्गिणीनां तरुणान्वितनाग्मतुच्छपद्मच्छदलाच्छितानि। पृथूनि यस्मिन् पुलिनानि रेजुः काञ्चीपदानीव नखाल्पिता।। अर्थात् मगध देश में वृक्ष पंक्तियों से युक्त विशाल पुलिन विकसित कमलपत्रों से चिह्नित हैं, फलत: नायिका के नखक्षत युक्त जघन प्रदेश के समान शोभायमान हो रहे हैं। संक्षेप में मुनिसुव्रत काव्य जैनधर्म में महनीय स्थान प्राप्त तीर्थङ्कर परम्परा के विशिष्ट रत्न मुनिसुव्रत स्वामी के जीवन का काव्यात्मक शैली में निबन्धन करने वाला श्रेष्ठ महाकाव्य है। इसकी भावपूर्ण कल्पनाएँ, रुचिर प्रस्तुति, चित्ताकर्षक वर्णन क्षमता, प्रवाहयुक्त पदशय्या एवं मोहक अलङ्कृति सौन्दर्य इसे जैन संस्कृत महाकाव्य परम्परा का एक उत्कृष्ट हीरक रत्न सिद्ध करने में समर्थ है। सन्दर्भ - 1. मुनिसुव्रतकाव्य 1/12-13 15 मुनिसुव्रतकाव्य 7/11 2 मुनिसुव्रतकाव्य 2/1 17 मुनिसुव्रतकाव्य 7/12 3 मुनिसुव्रतकाव्य 2/10 18 वही 7/13 4 मुनिसुव्रतकाव्य 2/7-8 19 मुनिव्रतकाव्य 8/17 5 मुनिसुव्रतकाव्य 2/11 20 नलचम्पू 1/21-22 6 मुनिसुव्रतकाव्य 3/23-25 21 मुनिव्रतकाव्य 1/15 7 मुनिसुव्रतकाव्य 3/28-30 22 मुनिव्रतकाव्य 1/14 8 मुनिसुव्रतकाव्य 3/32 23 मुनिव्रतकाव्य 1/16 9 मुनिसुव्रतकाव्य 4/13 24 मुनिव्रतकाव्य 1/34 10 मुनिसुव्रतकाव्य 4/23-40 25 मुनिव्रतकाव्य 1/35 11 मुनिसुव्रतकाव्य 4/42-47 26 मुनिव्रतकाव्य 2/24 12 मुनिसुव्रतकाव्य 5/1-10 27 मुनिव्रतकाव्य 1/52 13 मुनिसुव्रतकाव्य 6/43 28 मुनिव्रतकाव्य 1/41 14 मुनिसुव्रतकाव्य 7/2-3 29 मुनिव्रतकाव्य 1/26 तथा 39,50 प्रो. डॉ.मनुलता शर्मा पूर्व अध्यक्ष संस्कृतविभाग, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय 437
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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