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________________ 15. बलाबल का निम्न क्रम स्वीकृत है - (क) वर्ग के प्रथम चार वर्ण-सबसे अधिक बलवान् परन्तु परस्पर समान बलवाले। (ख) वर्ग के पञ्चम वर्ण-प्रथम चार वर्षों से कम बल वाले परन्तु परस्पर समान बल वाले। (ग) ल स व य र- सबसे कम बल वाले तथा क्रमशः निर्बलतर। 16. त्यथ्यद्यां च छ ज। 17. वोत्तरीयानीय-नीयकृये ज्य: / हेम0 8. 1. 248 18. छायायां ह कान्तौ वा। हेम0 8. 1. 249 19. डाह वौ कतिपये। हेम 8, 1.250 20. यष्ट्यां लः / वर0 2.32 तथा वृत्ति भामहकृत। हेम0 8-1-247 21. युष्मद्यर्थपरे तः / हेम0 8. 1. 246 22. वर0 4.3 तथा वृत्ति 23. स्त्यान-चतुर्थार्थे वा। हेम0 8.2.33 24. अभिमन्यौ जञ्जौ वा। हेम0 8.2.25 25. ह्रस्वात् थ्य-श्च-त्स-प्सामनिश्चले। हेम0 8.2.21 तथा वृत्ति। सामोत्सुकोत्सवे वा। हेम0 8.2.22 26. वही 27. द्यय्यर्यां जः / हेम0 8.2.24 28. ब्रह्मचर्य-तूर्य-सौन्दर्य-शौण्डीर्ये र्यो र: / हेम 08.2.63 / एतः पर्यन्ते। हेम 08.2.65 29. धैर्ये वा। हेम0 8.2.64 / आश्चर्ये / हेम0 8.2.66 30. अतो रिआर-रिज्ज-रीअं। हेम 08.2.67 31. पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये ल्ल: / हेम 0 8.2.68 32. साध्वस ध्य-ह्यां झः। हेम0 8.2.26 क्या बौद्धदर्शन में आत्मा और पुनर्जन्म है ? भगवान बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. हुआ था। उनतीस वर्ष की आयु में वे गृहत्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े। उन्होंने अनेक गुरुओं से ध्यान, योग सीखा किन्तु उन्हें शान्ति नहीं मिली। बाद में छ: वर्षों की साधना के बाद गया में निर्वाण का मार्ग मिला गया। उन्होंने सारनाथ-वाराणसी के ऋषिपत्तन मृगदाव में पञ्चवर्गीय भिक्षुओं को प्रथम उपदेश देकर धर्मचक्र प्रवर्तन किया। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के समय में 62 अन्धविश्वासों के मत प्रचलित थे। इसी काल में जैनधर्म में 363 मतवादों का उल्लेख मिलता है। भगवान बुद्ध के उपदेश को उनके अनुयायियों ने विभिन्न प्रकार से व्याख्यायित किया जिससे वह अठारह मतवादों में विभक्त हो गया। कुछ मतवाद इस प्रकार है- स्थविरवाद (थेरवाद), महीशासक, सर्वास्तिवाद, हेमावत, वात्सीपुत्रीय, सौत्रान्तिक आदि। बौद्ध दर्शन के विभाजन का द्वितीय प्रकार हीनयान और महायान के रूप में है। हीनयान बौद्ध दर्शन का प्रारम्भिक रूप (प्राचीनतम रूप) है जिसमें व्यक्तिगत निर्वाण को महत्त्व दिया गया है। महायान शब्द का अर्थ है- बड़ी गाड़ी इसमें व्यक्ति की अपेक्षा सामूहिक समाज कल्याण पर महत्त्व दिया गया है। हीनयान का प्रचार लङ्का, थाईलैण्ड व वर्मा में हुआ और महायान का प्रचार जापान, कोरिया में। बौद्धदर्शन के प्रमुख सिद्धान्त वे सिद्धान्त जो सभी बौद्धानुयायिओं को मान्य हैं - चार आर्य सत्य और मध्यम मार्ग भगवान् बुद्ध ने बोधिलाभ के बाद मध्यम मार्ग (दो अन्तों का त्याग) को यथार्थ बतलाया अर्थात् इन्द्रिय सुखों की अति आसक्ति प्रथम अन्त है तथा संसार से विरक्त होकर अतीन्द्रिय स्वर्गादि सुख की कामना से कठोर कष्टदायक तपश्चरण दूसरा अन्त है। इन दोनों अन्तों में आसक्ति (कामना) का साम्राज्य है। इन दोनों अन्तों के बीच का मार्ग मध्यम 400
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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