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________________ 5. गो0 जी0200 6. गो0 जी0 202 7. गोजी0 216 8. धवला पु, 7 पृ, 6 मनोवाक्कायावष्टंभबलेन जीवप्रदेशपरिस्पंदो योग इति / 9. गो0 जी0 271-272; धवला, पु01 पृ0 141 आत्मप्रवृत्तेमैथुनसम्मोहोत्पादो वेदः / / 10. गो0 जी0 282-2833; त0 सू०,अ08 सूत्र 9 11. धवला 6/42 12. भूतार्थप्रकाशकं ज्ञानम्। धवला, पु०,1 पृ0142 13. गो0 जी0 299 14. धवला 1/355 15. राजवार्तिक 9/1 16. धवला 1; सूत्र 116 टीका 17. गो0 जी0 गाथा, 465 18. त० सू09/18 19. जयधवला, पु. 1, पृ, 331 20. जयधवला, पु. 1, पृ, 338 जं सामण्णं गहणं भावाणं णेव कटुमायारं / अविसेसदूण अढे दंसणमिदि भण्णदे समये / / गो,जी, गा 482, भावाणं सामण्णविसेसयाणं सरूवमेत्तं जं। वण्णणहीणग्गहणं जीवेण य दंसणं होदि।। गो,जी, गा, 483 21. धवला, पु. 1, पृ, 149-150 22. वही। 23. लिंपइ अप्पीकीरइ एदीए णियअपुण्णपुण्णं च। जीवोत्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा। गो0 जी0 गा0 489 जोगपउत्ती लेस्सा कसायउदयाणुरंजिया होइ। तत्तो दण्णं कज्जं बन्धचउक्कं समुद्दिटुं / / गो0 जी0 गा0 490 24. धवला, पु. 8 पृ,356 ;तथा पु;16पृ, 485%; 488 25. गो0 जी0, गा0 493-495; 507-517 26. गो0 जी0, गा0 536 27. गो0 जी0, गा0 557-558 28. गो0 जी0, गा0 559 29. रत्नकरण्डश्रावकाचार 30. गो0 जी0, गा0 561 31. धवला, पु. 6; 248;263 32. वही 33. गो0 जी0, गा0 660-662 34. गो0 जी0, गा0 664-666 35. प्रवचनसार 36. गो0 जी0, गा0 666 तथा 'प्रतरोलोकपूरणे च कार्मणः / तत्र अनाहारक इति' स्वा. का. अ. गाथा 487 377
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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