________________ 14. कम्मविमुक्कसरूवो अणिंदियत्ता अछेज्जभेज्जो उ।। रूवादि विरहितो वा अणादिपरिणामभावातो।। छउमत्थाणुवलंभा तहेव सव्वन्नुवयणओ पापं / लोगादि पसिद्धीतोऽमुत्तो जीवोत्ति णेयव्वो।। धर्म, 192-193 15. परिणामी खलु जीवो सुहादिजोगातो होइ णेयव्वो। णेगंतणिच्चपक्खे अणिच्चपक्खे ये सोऽजुत्तो।। एक सहावो णिच्चो स जइ सुही णिच्चमेव तब्भावो। पावइ तस्स अहदुही दुहभावो दिस्सए चुभयं / / धर्म. 194-195 16. संसरति बध्यते मुच्यते च नानाश्रया प्रकृतिः।-सांख्यकारिका, का0 62. 17. कत्तति दारमहुणा कत्ता जीवो सकम्मफलभोगा। अस्स य अणब्भुवगमे लोगादि विरोह दोसोत्ति / / दठूण कंचि दुहियं सुहियं वा एव जंपती लोगो। भुंजति सकयफलं णय वडजक्ख निवासतुल्लमिणं // धर्म. 546-547 तम्हा निमित्तकारण भूओ कत्तति जुत्तिओ सिद्धो।। धर्म. 580 18. जीवो सुहाभिलासी दुक्खफलं कह करेति सो कम्मं / मिच्छत्तदिभिभूओ अपत्थकिरियं व सरुउत्ति।। धर्म. 567 19. भोत्ता सकडफलस्स य अणु हट्ठोव लोगागमप्पमाणातो।। कतवेफल्लपसङ्गो पावइ इहरा स चाणिट्ठो। सातासाताणुभवो तक्कारणभोग विरहजो ण सिया।। मुत्तागासाण जहा अत्थि य सो तेण भोत्तत्ति // धर्म. 581-582 20. जच्चिय विवागवेदणरूवा तप्परिणई हवति चित्ता। सच्चिय भोयणकिरिया नायव्वा होइ जीवस्स।। धर्म. 584 बज्झसहकारिकारणसावेक्खा सा य पायसो जेण। ता अङ्गणादिजोगे भोगपसिद्धी इह लोगे।। धर्म 586 21. सम्मत्तनाणचरणामोक्खपहो वन्निओ जिणिंदेहि।। सो चेवभावधम्मो बुद्धिमता होति नायब्वो। धर्म. 749 22. जइ णाम जीवधम्मा अणादिमंतो य एत्थ रागादी। सम्भवइ तहवि विरहो इह कत्थई हासभावाओ।। पडिबक्खभावणाओ अणुहवसिद्धो य हासभावो सिं। थीविग्गहादितत्तं भावयतो होइ भव्वस्स।। धर्म. 1163-1164 23. सिद्धसुखं-काऊण इमं धम्मं विसुद्धचित्ता गुरूवएसेणं। पावंति गुणी अइरा सासतसोक्खं धुवं मोक्खं / / धर्म, 1376 24. धर्म. 1386-1391 25. तेऽवि अपरिमाण च्चिय जम्हा तेणं ण तेसिमुच्छेदो। समयाण व तीतेणं वोच्छेज्जिज्जऽण्णधा ते तु।। तम्हाऽतीतेणाणादिणाऽवि तेसिं जथा ण वोच्छेदो। तह चेवऽणागतेणवि अणंतभावा मुणेयव्वो। धर्म, 1393-1394 26. एवमिह समासेणं भणितो धम्मो सुताणुसारेणं। आताणुसरण हेतु केसिं चि तहोवगाराय।। काऊण पगरणमिणं पत्तं जं कुसलमिह मया तेण। दुक्खविरहाय भव्वा लभंतु जिणधम्म संबोधिं / / 27. धर्म. 548-561 344